Book Title: Dharmpariksha
Author(s): Ishwarlal Karsandas Kapadia
Publisher: Mulchand Karsandas Kapadia

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Page 197
________________ कायोद्वारा कर्मबंध करे छ, माटे मिथ्यात्त्र, अव्रत अनं कषायोनो अभाव कर्या वर ते कर्मबंध केवी रीते नष्ट थई शके ? ॥ १२ ॥ जे लोक व्रताचरण विना दीक्षा मात्रधीज मोक्ष फलनी प्राप्ति थवी कहे छ, ते आकाशनी वेलना पुष्पोनी सुगंधिनुं वर्णन करे छे ॥ ६३ ॥ कोई कोई ऋषिओना आशीर्वाद मात्रथीन कर्मक्षय थवो माने छे, जो कदाच एम होत तो राजाना मित्रबंधुओना आशीर्वचनोथी राजाना शत्रु नष्ट थई जाय, परंतु एवं कदी पण जोवामां आवतुं नथी ॥ ६४ ॥ जो दीक्षा लेवाथी जीवो नो राग( संसारी मोहज नष्ट थतो नथी ते ते दक्षिा अनेक जन्मोनां करेलां प्राचीन कमोंने केवी रीते नष्ट करी शके ? ते माटे-॥६५॥ सत्यार्थ गुरुनां वचनोथी जाणीने रत्नत्रयनु सेवन करवावालानांज पाप नष्ट थाय छे. आ वचनज सत्य जाणवू ॥ ६६ ॥ हे मित्र ! कषायने वशीभूत थंईने आत्मानां करेलां पाप दीक्षा लेवाथीन नष्ट थई जाय छे, ए वातने कयो विद्वान खरी मानी शके ? ॥६७ ॥ जो कषाय सहित ध्यान करवाथीन मोक्षपदनी प्राप्ति थाय, तो वन्ध्याना पुत्रनुं सौभाग्य वर्णन करवामां पण द्रव्यनी प्राप्ति थवी जोईए, ते असंभव छे ॥ ६८ ॥ जे पुरुषोए इन्द्रिओनो जय अने कषायोनो निग्रह कर्यो नथी, एवा पुरुषोनां वचन धूर्तानां वचन समान सत्य नथी ॥ ६९ ॥ उर्व अने अधोद्वारथी निकलवाथी मारी निंदा थशे, एवं समजीने जे बुद्ध माताना पेटने फाडीने निकळयो अने मांस भक्षणमां लोलुपी थईने मांस भक्षण करवामां दोषनो अभाव कहे छे, ते मूढबुद्धने कृपा ( दया) केवीरीते हाई शके? ॥ ७०-७१ ॥ जे मूर्खे कीडाथी भरेला शरीरने जाणी बुझीने पण वाघेणना मुख आगळ नांखी दीg, ते बुद्धने संयम

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