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॥ ३२ ॥ ते पछी हुँ मारे शरीरे भस्म चोळीने माथु मुंडयो घेरथी नीकळी तपस्वीओनी साथेज चाल्यो गयो ॥ ३३ ॥ तपस्वीओमां रहीने में मोटुं कठीण तष कर्यु केमके जे चतुर छे ते कल्याणकारी कामनो आरंभ करतां कदी प्रमादि थता नथी ॥ ३४ ॥ एक दिवस हुं याद करीने साकतपुर नगरमा गयो, तो मारी माताने बाजा वरसाथे परणेली जोई त्यारे ॥ ३५ ॥ में मारो पूर्व संबंध कहीने तपस्वीओने पूछयु, तो तेओए कह्यु केएक साथे विवाह थयापछी बीजा वर साथे विवाह करवामां कई दोष नथी केमके-'द्रौपदिना पांचे पांडव भर्तार हता, तो तारी माताने बे भर्तार होवामां शु दोष छे' ॥ ३६-३७ ॥ एकवार विवाह करवा पछी देवयोगथी पति मरी गयो होय तो अक्षतयोनि स्त्रीनो फरथी विवाह संस्कार थवो जोईए ॥ ३८ ॥ जो पति परदशेमां चाल्यो गयो होय तो प्रसूता स्त्री आठ वर्ष सूधी अने अप्रसूता चारवर्ष सूधी पोताना पतिने आववानी राह जोईने बीजो पति करीले. बलके-॥ ३९ ॥ विशेष कारण होवाथी पांच पति सूधी करवामां पण स्त्रीओने कोई पण दोष नथी. ए प्रमाणे व्यासादि ऋषिओनुं वचन छे. ॥ ४० ॥ ए पछी में रूषिओर्नु वचन सांभळीने मारी माताने निर्दोष जाणी तापसोना आश्रममा एकांतमा रहीने एक वर्ष सूधी तप कर्यु ॥ ४१ ॥ ते पछी हे ब्राह्मणो ! तीर्थयात्राने माटे पृथ्वीमां फरतां फरतां आज आपना आ नगरमां आव्यो छु ॥ ४२ ॥ आ प्रमाणे सांभळीने क्रोधनी साथे होठो कचकचावीने ब्राह्मणो बोल्या के अरे दुष्ट! तुं आ प्रमाणे असत्य बोलवा- क्याथी शीख्यो? ॥ ४३ ॥ हमने तो मालूम पडेछे के ब्रह्माजीए जगतनी सबळी असत्यता एकठी करीनेज तने बनाव्यो छे, नहि तो आ प्रमाणे असंभव वात फोकटज तुं शुं काम