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करे छे,तो पाषाणवडे पृथ्वीमांधान्यादिक उप्तन्न थर्बु जोईए॥४४॥ ते पछी दोष छूपाववाने माटे अंधकवृष्टि राजाए ए सघळी बीना जाणीने ते कुंती पांडुनेज परणावी, अने धृतराष्ट्रने गांधारी नामनी बाजी कन्या परणावी ॥ ४५ ॥ पुराणानी साची कथा तो आ प्रमाणे छे, अने व्यासजीए जुदाज प्रकारे कही छे. रागद्वेष अने आग्रहथी लवलिन पुरुष पाप कार्यथी डरता नथी ॥ ४६ ॥ केमके धर्मात्मा पुरुष होय छे, तेओ युक्तिथी सिद्ध नहि होय, एवां वचन कदापि कहेता नथी. पापी माणसज युक्तिथी अघटित वचन कहे छे ॥ ४७ ॥ आ संसारमा सघळानो सर्व प्रकारनो संबंध जोवामां आवे छे परंतु एवं कदापि पण जोवा सांभळवामां आव्युं नथी के-पांच भाईओने एकज स्त्री होय ॥ ४८ ॥ जो के संसारी जीव सर्व प्रकारनी धनसंपत्तिनो विभाग करे छे, परंतु स्त्रीनो संविभाग तो नीचपुरुषोने त्यां पण निंदनीय छे ॥ ४९ ॥ हे मित्र ! योजनगंधा नामनी धीवरीनो जणेलो व्यास कोई बीजोज हशे. अने आ धन्यवादनीय सत्यवती रामकन्या नो व्यासपुत्र ( व्यास नामनो ) राजा बीजो छे ॥ ५० ॥ पारासर राना बीजो छे, अने पारासर तापसी बीजोज छे, परंतु मूढ लोक नाम मात्रने सांभळीने कंईनो कई संबंध लगावे छे ॥ ५१॥ दुर्योधनादिक सो पुत्र तो गांधारी अने धृतराष्ट्थी उत्पन्न थया, अने जगत्प्रसिद्ध पांच पाडव छे ते कुंती तथा माद्रीना पुत्र छे ॥ ५२ ॥ गांधारीना सों पुत्र तो कर्ण राजा सहित जरासिन्धु नामना राजाना अनुयायी सेवक हता. भने पांच पांडव श्री कृष्ण नवमा नारायणनी सेवामां रहेता हता ॥ ५३ ॥ ते महाबली श्री कृष्ण जरासिंधु प्रति नारायणने