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॥ ४२ ॥ आ प्रमाणे विचार करीने हमे बन्ने पोतानी मेळे श्वेतांबरी साधु बनी गया, अने. पृथ्वीमां भ्रमण करता करता आज तमारा नगरमां आव्या छीए ॥ ४३ ॥ ब्राह्मणोए का के-कदाच तुं नरकमां जवाथी डरतो नथी तो पण व्रती पुरुषे आ प्रमाणे असत्य भाषण कर सर्वथा अयोग्य छे ॥ ४४ ॥ आ सांभळीने मनोवेगे कडं के तमारा वाल्मीकीकृत रामायणमां आ प्रमाणेनां वचन शुं नथी? ॥ ४५ ॥ त्यारे ब्राह्मणोए कह्यु के-जो तें रामायणमां कोई जग्याए पण एवं कथन जोयुं होय तो निःसंदेह कहे. त्यारे मनोवेगे कह्यु के-॥४६ ।। दश मस्तक अने वीश हाथवाळा अतीशय धारवीर त्रण भुवनमा प्रासंध राक्षसोना अधिपति रावणे शिवजीमां अत्यंत स्थायी भाक्ति प्रगट करवाने माटे तरवारथी पोतानां नव मस्तक कापी नांख्यां अने पुष्पना दल समान छे होठ जेना एवा मुखरुपी नव कमलो द्वारा शिवभीनी भक्तिपूर्वक पूजा करी. ते ठीकज छे, के वरदाननी इच्छा राखवावाळा शुं शुं करता नथी, ॥ ४७-४८-४९ ॥ ते पछी रावणे पीस हाथोथी गंधर्वदेबोने पण मोहित करवावाळु हस्तक नामनुं संगीत करवा मांडयु ॥ ५० ॥ महादेवे पण पार्वतीना मुख उपरथी पोतानी द्रष्टि हठावाने रावणना साहसने जोई तेने मन मान्युं वरदान आप्यु ॥५१॥ ते पछी गरम गरम लोहीथी जमीनने सिंचन करती डोकाओ नी हार मस्तकमालाने रावणे जोड रहित पोतानी खांधोपर वळगावी लीधी ॥ ५२ ॥ हे ब्राह्मणो! आ प्रमाणे वाल्मीकीए रामायण मां लल्यु छ के नहि ते तमे लोक जो सत्यवादी छो तो बरोबर कहो ॥ ५३॥ ब्राह्मणोए कह्यु के-हे साधु! ए सघळु सत्य छे, ए प्रमाणे