________________
सृष्टिने के वी रीते बनावी ? केमके जे पोते शरीर रहित ( अमूर्तिक ) छे, ते बीमा शरीरने ( मूर्तिक पदार्थने ) कदी बनावी शकता नथी ॥ ८३ ॥ वळी सृष्टिने उत्पन्न करीने जे ब्रह्मा नाश करे छे तेथी तेने लोकनी ह त्यानु ( पोताना संतानने मारवार्नु ) जे महापाप लागे छे, ते केवी रीते दुर थई शके ? ॥ ८४ ॥ जो ब्रह्मा कृतकृत्य, शुद्धर्ति, नित्य, अमूर्तिक सर्वज्ञ छे तो तेने सृष्टि रचवाथी शुं लाभ छे ? ॥ ८५ ॥ जो सृष्टि विना३ । करवा योग्य छे तो तेने उत्पन्न करतीज व्यर्थ छे, केमके फरी फरी विनाश करीने विनाशनीय जगतने उत्पन्न करवामां कई फळ नथी ॥ ८६ ॥ ए प्रमाणे तमारां सघळां पुराण पुर्वापर विरोधी भरेलां छे, माटे हे विप्रो! न्यायनिष्ट विद्वजन तेना ऊपर केम विश्वास करे? ॥ ८७ ॥ आ प्रमाणे मनोवेगना कहेवा पछी ब्राह्मणोए कई उत्तर आप्यो नाहि, त्यारे ते मनोवेग त्यांथी नाकळीने बागमां आव्यो अने पोताना मित्र पवनवेगने कहेवा लाग्या के ॥ ८८ ॥ हे मित्र ! तें देवोनो वृत्तांत्त तथा पुराणोनो अर्थ सांभळयो के केवो छे ? जे विचारवान छे तेने तो ए पुराणोमां अथवा देवोमां कईपण सार देखातो नथी ॥ ८९ ॥ एवो कोण पुरुष छे के जे नारायण चतुर्भुज ब्रह्माने चतुर्मुखी अथवा महादेवने त्रिनेत्रि कबुल करे अथवा प्रतिपादन करे ? ॥ ९ ॥ जगतमा सघळाने एक मुख, बे हाथ, अने बे आंखन देखाय छे, परंतु मिथ्यात्वथी आकुलित लोक कंईनुं कई बक्या करे छे ॥ ९१ ॥ हे मित्र आ पृथ्वि अनादिनिधन आकाशमा स्थिर अने अकृत्रिम छे. आकाशनी माफक एनो पण कोई कर्ता हर्तानथी ॥९२ ॥ आ लोकमां पोतपोतानां कमों प्रमाणे प्राणीमात्र हमेशां पवनथी सूकां पांतरांनी माफक सुखदुःख