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॥ ४२ ॥ घणुं आश्चर्य छे के-पृथ्वी होवा छतां भिंडीना झाड उपर हाथी सहित मास कमंडलर्नु रहेतो असत्य अने तमारं ते थडपाया वगरनुं कथन सत्य? ए केवो न्याय छे! ॥ ४३ ॥ जो ब्रह्मा सर्वज्ञ छे, व्यापक छे, चराचर पदार्थोने जाणवावाळा छे, तो एवा ब्रह्माए सृष्टी क्यां छे ते केम न जाण्यु, ने ढूंढता फरदुं पडयुं? ॥ ४४ ॥ जे ब्रह्मा जलदीथी नरकमाथी प्राणिओने खेंचीने लावी शके छे ते ब्रह्मा पोताना वृषणना बालने केम नहि छोडावी शक्या? ॥ ४५ ॥ जे विष्णु सघळी पृथ्वीने प्रलय थती जाणीन रक्षा करे छे, तेणे सीताजीना हरणने केम न जाण्युं अने रक्षा केम नहि करी ॥ ४६॥ जे लक्ष्मण सघळा जगतने मोहित करी शके छे, ते लक्ष्मण इन्द्रजीत वडे मोहित थईने नागपासमां केम बंधाई गया? ॥ ४७॥ जे विष्णुना स्मरण मात्रथी सघळा जीवोनी आपदानो नाश थाय एम मानो छो, एवा विष्णु भगवानने सीतानो वियोग थवो वगेरे दुःख केम प्राप्त थयु! अने जे पोतानीज आपदा दूर करी शकता नथी, ते बीजानी आपदा केवी रीते दूर करी शके! ॥ ४८ ॥ जे रामचन्द्रे नारदने पोताना दश जन्मनी वातो कही, ते रामे शेषनागने पोतानी कान्ता सीतानो हाल केम पूछयो? के-॥ ४९ ॥ हे फाणराज ! कमळसमान हाथ पग अने मोढांवाळी , रुपलावण्यनी नदी, गुणोनी खाण, एवी मारी स्त्री तमे कोई जग्याए जोई ? ॥ ५० ॥ लोक अनादि काळथी मिथ्यात्वरुपी हवाथी टाढा ( ठंडा) करायला छे, तेने सेंकडो जन्ममां पण सरल करवाने कोण समर्थ छे? ॥ ५१॥ क्षुधा १ तृषा २ भय ३ द्वेष ४ राग ५ मोह ६ मद ( गर्व) ७ रोग ( चिंता ९ जन्म १० जरा ११ मृत्यु १२ विषाद १३ विरमय