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पाढयुं ॥ ९ ॥ ते पछी पातालमां जईने दश करोड सेना सहित शेषनाग अने सात रूपियाने लई आव्यो ॥ १० ॥ मनोवेगे कां के-केम विप्रो ! तमारा शास्त्रमां एवं लख्युं छे के नाही ! त्यारे ब्राह्मणोए कां के–बेशक एमज लखेलुं छे ॥ ११ ॥ पछी मनोवेगे कह्यं के ज्यारे बाण - वडे करेला सूक्ष्म काणामांथी दश करोड सेना सहित शेषनाग आवे छे तो हे विप्रो ! कमंडलना काणामांथी हाथी केम नहि नीकळे ? ते पक्षपात छोडीने जलदी कहो ॥ १२-१३ ॥ तमारुं शास्त्र तो साचुं अने मारुं वचन जूठु छे ! माटे एमां पक्षपात सिवाय बीजु कई कारण देखातुं नथी || १४ || त्यारे ब्राह्मणोए क के कमंडलना छिद्रमांथी हाथी नुं अन तारुं नीकळवूं तो हमे शेषनागना आव्या गयानी माफक प्रमाण कर्यु, परंतु एटलो माटो हाथी ते कमंडलमां केवी रीते समायो ? तथा हा थीना भारथी भिंडीनुं झाड केम टूटयुं नहि ? तथा कमंडलना मु खमांथी ज्यारे हाथीनुं पुष्ट शरिर नीकळी गयुं तो पूछडीनो बाल
म अटकी रह्यो ? माटे हे भद्र ! आ वचन तो तारुं हमे कदी मानी शकता नथी त्यारे मनोवेगे कयुं के ए वचन मारुं प्रत्यक्ष रीते सत्य छे केमके आपना शास्त्रमां सांभळयुं छे के एक वार अंगुठानी बराबर अगस्त्य मुनिए समुद्रनुं सघलुं जळ त्रण चमचायां भरीने पी लीधुं हतुं ॥ १५–१६-१७=१८ ॥ ज्यारे अगस्त मुनिना पेटमां समुद्रनुं सघळु जळ समाई गयुं तो हे विप्रो ! मारा कमंडलमां हाथी केम न समाय ? ॥ १९ ॥ तथा एक वखत आ सघळी सृष्टि समुद्रमां तणाईने नाश थई गई, एवं समजीने ब्रह्माजी व्याकुलचित्त थई आमतेम ढूंढता फर्या ॥ २० ॥ त्यारे अलसीना पेडनी शाखा उपर राइ बराबर