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प्रकरण ६ हुँ
हे ब्राह्मणो ! तमे अग्निसमान तापकारी द्विष्ट पुरुषनी कथा तो सांभळी, परंतु हवे पाषाण समान नष्टबुद्धि मूढपुरुषनी कथा सांभळो
३॥ मूढ पुरुषनी कथा. यक्ष देवोना स्थान समान निधाननो खजानो देवालयोथी भरेलु कंठोष्ठ नामनुं एक नगर हतुं ॥ २ ॥ त्यां विनोथी पूजनीक वेद वेदांगनो जाणकार अर्थात् ब्रह्मानी माफक चार वेद छे मोंढे जेने एवो एक भूतमति नामनो ब्राह्मण रहतो हतो ॥ ३ ॥ ते धिरचित्तवालाने वेदादि भणतां भणतां पचास वर्ष तो बाल ब्रह्मचर्यावस्थामांज वीति गया ॥ ४ ॥ ते पंछी तेना कुटुंबी जनोए तेनो यज्ञनी अग्निशिखा समान उज्ज्वल, नारायणनी लक्ष्मि समान यज्ञा नामनी एक कन्या साथे विधिपूर्वक विवाह कर्यो ॥ ५ ॥ते भूतमति उपाध्यायनी पदवीमांज रहतो लोकोने भणाववाने आशक्त बुद्धिवाळो, सघळा ब्राह्मणोथी पूजनीय, यज्ञ कराववामां प्रवीण, भोगाभिलाषियोमां मान्य, ते यज्ञानी साथे अनेक प्रकारना भोग भोगवतो, स्थिर चित्तवाळो पृथ्विमा प्रसिद्ध विद्वान थई सुखथी रहतो हतो ॥ ६-७ ॥ एने त्यां भणवानी ईच्छाथी स्त्रिओना नेत्ररुपी भ्रमरोने कमळ समान युवावस्थानो धारक, यज्ञना जेवो पवित्र यज्ञ नामनो एक बटुक ( ब्राह्मणनो छोकरो) आव्यो ॥ ८ ॥ ते