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काळा कोइ मनुष्य आ वादक्षालामा होय तो हुँ पूछवा छतां पण साची बात कहेतां डरूंछु ॥ ७२ ॥ आ प्रमाणे में चंदनत्यागी मूर्ख को हो सघळा प्रकारे निंदाने पात्र चार मूर्योनी कथा कहुं छु ते सांभळो ॥७३॥
१० ॥ चार मूखोंनी कथा ॥ .. एक समये चार मूल् साथे कोइ जग्याए जता हता, तेओए रस्तामा एक जग्याए जिनेश्वरना जेवा निष्पाप मोक्षाभिलाषी मुनिराजने मोया ॥ ७४ ॥ आ मुनिराज एवा छे के वीरनाथ होवा छतां पण कोइ जीवने पीडा करता नथी, बन्ने नयना कहेवावाळा थइने पण ससवादी छे, चित्तचोर होवा छतां पण चौर्य कर्मथी रहित छे, निष्काम होवा छतां पण मोटा बळवान छे ॥ ७९ ॥ ग्रन्थधारी (सिद्धांत शास्त्रना माणकार ) होवा छतां पण निर्मल ( पापरुपी मेलथी रहित ) छे, गुप्तिमान एटले मन वचन काय गुप्तिना धारक होइने पण निबन्ध छे, विरुप होवा छतां पण मनुष्योने प्रिय छे ॥७६॥ महाव्रती होइने पण अंधकारनो नाश करवावाला छे. सर्व संग रहित होइने पण समितिओना प्रवर्तक छे ॥ ७७ ॥ प्राणिमात्रना रक्षक होइने पण धर्ममार्ग चलाववामां चतुर छे. सत्यमां लवलीन होवा छतां पण धर्मने बधारवावाळा छे ॥ ७८ ॥ समुद्रना जेवा गंभीर, मेरु पर्वतना जेवा स्थिर, सूर्यना मेवा तेजस्वी, चन्द्रमाना जेवा कान्तिवाळा ॥ ७९ ॥ सिंह समान निर्भय, कल्पव्रक्षना जेवा वांछित वस्तु आपवावाळा, वायुना जेवा निःसंग, आकाशना जेवा निर्मल छे ॥ ८० ॥जे प्रमाणे