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अने संसाररुपी समुद्र तरवाने वहाण समान विष्णुने जे लोक मानता नथी ते मनुष्य शरीर धारण करवा छतां पण पशु जेवो छे ॥ १९ ॥ मनोवेगे कयुं के हे ब्राह्मणो ! जो तमारा विष्णु एवा उत्कृष्ट छे तो नन्द घेर गोकुळमां गोवाळीआ थईने गायने शामाटे चरावता हता? ॥ २० ॥ तथा कुटज पुष्पोनी माळाथी दृढ़ बांधेल मोरना पीछां धारण करीने गोवाळीआनी साथे वारंवार रासक्रीडा केम करता हता? ॥ २१ ॥ तथा युधिष्टरनी तरफथी दूतपणुं करवाने माटे दुर्योधननी पासे सिपाइ तरीके दोडता दोडता केम गया हता ? ॥ २२ ॥ तथा हाथी घोडा पायदळी भरेला युद्धमा अर्जुनना सारथी ( रथ हांकवावाळा ) बनीने शामाटे रथ हांकता हता? ॥ २३ ॥ तथा ब्राह्मणरुप धारण करीने भिखारीनी माफक दीन वचन कहीने बलिराजा पासे पृथ्वीनी याचना केम करी हती ? ॥ २४ ॥ तथा सघळा लोकने धारण करवावाळा सर्वज्ञ सर्वव्यापी स्थिर थईने रामावतारमा कामीनी माफक बबी तरफथी सीतानी विरहरुपी अग्निवडे केवी रीते तापित थया? ॥ २५ ॥ आ अने बीजां अनेक अनुचित कार्य योगिओ द्वारा गग्य जगतना गुरु वंदनीक महात्मा देवने (विष्णुने) करवू योग्य छे? ॥ २६ ॥ जो आ प्रकारनां कार्य विरागरुप हरी [ विष्णु ] करे छे तो हवे दरिद्रीना पुत्रनो लाकडां वेचवामां कयो दोष छे? ॥ २७ ॥ जो आ प्रमाणेनी लीला मोरारि परमेष्टिने छे, तो पोतानी शक्तिअनुसार लाकडां वगेरे वेचवारुप लीला करतां हमने कोण रोकी शके एवं छे ? ॥ २८ ॥ आ प्रकारे विद्याधर मनोवेगनां वचन सांभळीने चतुर ब्राह्मणोए कह्यु के, हमारा विष्णु भगवान तो एवाज छे. एनो उत्तर हमे शुं आपी