________________
१०५
मनुष्य आ त्रणेनी समान कार्य अकार्यने प्रगट करवावाळा, वचनने मुट्ठीओ मां उडाववावाळा, दीन निबुद्धि छे, तेनी आगळ पंडितजनोथी पूजनीय अविनाशीक मोक्षलक्ष्मिने जोवावाळा निर्दोष, अपरिमाण ज्ञानना धारक सत्पुरुषोए तत्त्व ( वस्तुनुं सत्यार्थ स्वरुप ) कहेवू जोईए नहि ॥ १० ॥
आ प्रमाणे श्री अमितगति आचार्य कृत 'धर्म परिक्षा' संस्कृत ग्रंथनी गुजराती भाषाटीकामां दशमुं प्रकरण पूर्ण थयुं ॥ १० ॥
ANN
HOME
A
SW
INE