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अबला कहे छे. एनामां आशक्त थईने मनुष्य प्रमादी थंई जाय छे कारणथी एनुं नाम प्रमदा पण छे ॥ १९ ॥ अनेक अनर्थो करवामां प्रवीण स्त्रीओना आ सघळां नामज प्रगटरीते दुःखकारक वेदना समान दुःखोनां कारण छे ॥ २० ॥ अ रक्षित ( वशमां न करेली ) स्त्री मननी इच्छा प्रमाणे निरंतर दोषोज धारण करे छे, ए कारणथी स्त्रीओने हमेशां वशमां राखवी जोईए ॥ २१ ॥ जे पोतानुं हित चाहे छे, ते सत्पुरुष नदी, सर्पिणी, वाघण अने मृगलोचनी स्त्रिओनो विश्वास करता नथी ॥ २२ ॥
हवे एक वखते मथुराना ब्राह्मणोए कंई भेट आपीने पुंडरिक नामनो यज्ञ करावाने माटे भूतमतिने बोलाव्यो. जेथी तेणे पोतानी स्त्रीने क के हे यज्ञा ! घरनी रक्षा करती तुं तो घरनी अंदरज शयन करने अने आ बटुकने घरनी बहार बारणां आगल सुवाडजे, आ प्रमाणे कहने ते भूतमति मथुरा चाल्यो गयो | २३ - २४ ॥ पोतानो पति गया पछी ते पापीष्ट यज्ञाए पेला ब्राह्मणना छोकराने पोतानो यार बनावी लीधो ते नीति छे के सुना घरमा व्यभिचारिणी स्त्रिओनुं माटुं राज्य थई जाय छे ॥ २५ ॥ ते बन्नेनां परस्पर दर्शन स्पर्शन अने वारंवार गुप्त अंगो प्रकाशवाथी कामेच्छा, घृतना स्पर्शथी अग्निनी ज्वालासमान जलदथी तीव्रपणे ववी गई ॥ २६ ॥ घणे भागे सवळा प्रकारनी स्त्रीओ डे सघळा पुरुषोनुं मन हराई जाय छे, तो तरुण व्यभिचारिणी वडे तरुण व्यभिचारीनुं मन केमं न हराई जाय ? ॥ २७ ॥ ए कारणथी ते बटुक ते यज्ञाना पीनस्तनोथी पीडित थईने तेने निरंतर भोगववा लाग्यो, जे नीतिज छे के एवो कोण पुरुष छे, जे एकांतमां युवति स्त्री मेळवीने. पण वैराग्यने प्राप्त थई जाय ! ॥ २८ ॥ सुंदरतानी खाण ते यज्ञाने