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उत्तम विचार करीने एवं वचन कहे छे के जेनाथी मोटा मोटा बुद्धिमाने नी बुद्धि पण नष्ट थई जाय छे अथवा भ्रमरुपी चकरमा गोथां खाई जाय छे ॥ १८ ॥ स्त्रीओ रुठी जवाथी अवज्ञा अवस्थामां बीजाथी करवामां न आवे, एवी स्त्रीनी स्थिरताने सारी रीते करवाने माटे रागी माणसो स्त्रीओना करेला क्रोध मान अने अवज्ञा वगेरेने स्वभावथीज सहन करी ले छे ॥ १९ ॥ जे नीच रक्तपुरुष होय छे, तेने स्त्री जेम जेम तिरस्कार करे छे तेम तेम देडकानी माफक तेनी सामु जाय छे ॥ २० ॥ अने ते विचित्र प्रकारना. आश्चर्य करवावाली स्त्री रक्तपुरुषने मोहित करी ले छे, अने रागयुक्त करेलुं पुरुषोनुं मन तरत रंजायमान थई जाय छे ॥ २१ ॥ जे प्रमाणे लुहार लोढाने बहु ताप दईने तेने तोडी पण शके छे अने जोडी पण शके छे, तेज प्रमाणे स्त्री पण प्रेमने तोडवाने अने जोडवाने बन्ने कामोमां समर्थ होय छे ॥ २२ ॥ जे प्रमाणे बिलाडी ना भयथी उंदर चुप थईने बेसी जाय छे, ते प्रमाणे बहुधान्यक कुरंगीना वचन सांभळीने मुंगो थईने बेसी गयो ॥ २३ ॥ सखत अग्निनो ताप तो सुखथी सहन थई शके परंतु स्त्रीनी भयकारीणी भ्रकुटी सहित वक्रदृष्टिने कोई पण सहन करी शकतुं नथी ॥ २४॥बेहाथ जोडीने प्रार्थना कर्या छतां पण ते दुष्ट स्त्री क्रोधायमान महाविषवाळी सर्पिणींनी माफक बडबडतीज रही ॥२५॥ दुर्निवाररोगनी माफक पुरुषोनेहमेशां कष्ट आपया वाली आ प्रमाणेना खोटा स्वभाववाली स्त्रीओ पापना प्रभावथीज थाय छे ॥ २६ ॥ ए अरसामां हे पिताजी घेर आवीने भोजन करो" आ प्रमाणे तेना पुत्रए प्रार्थनापुर्वक बोलाव्या छतां पण ते मूर्ख चिंतातूर नी माफक चुपज रह्यो ॥२७॥त्यारे "ते आशुपाखंड करवा मांडयुं छे, पोतानी