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मारी स्त्री मारी साथे केम रिसाई छे ? शुं तेणे मारुं कोई खोटुं आचरण जाणी लीधुं छे ? जो तमे जाणता हो तो कहो ॥ ५० ॥ ते ब्राह्मणे कयु के हे शेठ ! पोतानी स्त्रीनी बात तो रहेवा दे, एनी पहेलां स्त्रीओनी जे चेष्टाओ छे ते थोडीक कहुं छु ते सांभळ ॥ ११ ॥ जगतमां एवो कोई पण दोष नथी के जे स्त्रीमां न होय, केमके ' एवो कयो अंधकार छे के जे रात्रीमां कोई जगोए न होय' ॥ ५२ ॥ समुद्रना जळनुं प्रमाण करवू तो शक्य छे, परंतु सवळा दोषनी खाणरुप स्त्रीना दोपनी गणना कदापि थई शके नहि ॥ ५३ ॥ बीजानो दोष शोधी काढवामां चतुर बे बोला कहिए एकज वातने अहि कई अने अहिं कई बीजूं कहेवावाली स्त्रीओनो क्रोध महा क्रोधायमान सर्पिणीनी माफक कदापि शमातो नथी ॥ ५४ ॥आ स्त्री, हमेशां उपचार करती छतां पण अत्यंत वृद्धिरुप वेदनानी माफक जीवननो क्षय करवावाळी छे ॥ ५५ ॥ अहिंआं तहिंआं भटकता दोषोनो परस्पर कदी मेळाप थतो नहोतो, ए कारणथी ब्रह्माजीए सघळा दोषोनो एक जग्याए मेलाप कराववानी इच्छाथीज जाणे आ स्त्रीरुपी सभा बनावी छे ॥ ५६ ॥ जे प्रमाणे जळनी खाण नदी छे ते प्रमाणे अनर्थोनी खाण स्त्री छ; अने जेम विषतुं घर सर्प छे ते प्रमाणे नठारां चरित्रोनुं घर स्त्री छे ॥ ५७॥ जे प्रमाणे वेलोना उत्पन्न थवानुं कारण पृथ्वि छे, ते प्रमाणे अपयश उत्पन्न थवानुं कारण स्त्री छे, तथा जेम अंधकारनी खाण रात छे तेम खोटा नयोनी मोटी खाण स्त्री छे ॥ ५८ ॥ आ स्त्री पोतानो स्वार्थ साधवामां चौरटीनी जेवी छे; आताप करवाने आग्नि समान छे, हठ पकडवामां अचल छायासमान छे अने सांजनी माफक क्षणमात्र प्रेम