________________
केहवा लाग्या के आप कोण छो अने विरुद्ध छे हेतु जेनो एवा आप शा कारणथी आव्या छो ते कहो ॥ ८४ ॥ ए सोभळीने मनोवगे कह्यु के हे भद्र, हुं एक गरिबनो छोकरो छु, आ श्रेष्ठ नगरमां लाकडांनो भारो वेचवाने आव्यो छु ॥ ८५ ॥ आ सांभळी ते ब्राह्मण मनोवेगने कहेवा लाग्यो के, हे भद्र, तुं वाद जीत्या वगरज आ पूज्य सिंहासन उपर तरत वादनी सूचना करवावालो घंट वगाडीने केम बेसी गयो?॥ ८६ ॥ जो वाद जीतवाने तारामां शक्ति छे तो तुं वादीओना घमंडनो नाशकरवावाळा निर्दोष बुद्धिना धारक आ द्विजोत्तम पंडितोनी साथे वाद कर ॥ १७ ॥ हे मूर्ख! आ नगरमांथी आज सुधी कोई पण विद्वान वादने जीतिने यश मेळवीने गयो नथी. एवो कोण पुरुष छे के जे नागभुवनमाथी शेषनागना मस्तकनी मणिथी भूषित थईने जई शके ? ॥ ८८ ॥ तुं दिव्य मणिरत्नोथी भूषित थईने घास लाकडां वेचे छे, माटे तने तो वायुरोग छ, अथवा तो तने पिशाच वळग्यो छे, अथवा जुवानीना वधेला कामरुपी मदथी पागल थई गयलो देखाय छे, केमके-॥ ८९ ॥आ जगतमां द्रढ चित्तवाळा अथवा भोला जीवोना मनने मोहित करवावाळा अनेक ठगो छे, परंतु तारा सरखा पंडितोना मनने पण मोहित करखावालो मोटो ठग आ त्रण लोकमां कोई पण देखातो नथी ॥ ९० ॥ आ प्रमाणे वचन सांभळीने ते मनोवेग विद्याधर कहेवा लाग्यो के, हे विप्र, फोकट शुं काम कोप करो छो ? वगर कारणे तो सर्प पण रोष करतो नथी, तो पछी विद्वज्जन तो करशेज केवी रीते ? ॥ ९१ ॥ हे ब्राह्मण, हुं आ सोनाना सिंहासनने बहु मनोहर जोईने कौतुकथी तेना उपर बेसी गयो, भने , आ घंटनो भवाज आकाशमां क्यांसुधी थाय छे" एवो