________________
केमके शरिरनी आवी मनोहर शोभा बीजा कोइमा होवी असंभव छे. आ प्रमाणे कहीने भक्तिना भारथी नम्राभूत थइने नमस्कार करखा लाग्या, ते ठीकज छे. जेनी बुद्धि भ्रमित थई गई छे तेनाथी प्रशंसनीय काम कदापि थतुं नथी ॥ ७५-७६ ॥ कोई कोई कहेता हता के निश्चय करीने आ पुरंधर एटले इन्द्रज छे, केमके जगतने महा आनंद आपवावाली कान्ति बीजा कोइने होई शकती नथी ॥ ७७ ॥ केटलाक महाशयो कहवा लाग्या, के आ पोताना त्रीजा नेत्रने अदृश्य करीने पृथ्वी जोवाने हामदेवजी आव्या छे, केमके आवु रुप महादेवजी सिवाय बीजा कोइने होई शकतुं नथी । ७८ ॥ बीजा महाशयो कहेवा लाग्या के आ कोई महा उद्धत विद्याधर छे जे पृथ्विने जोतां जोतां अनेक प्रकारनी लीला करे छे ॥ ७९ ॥ आ प्रमाणे विचार करतां छतां पण ते सघळा, अनवाला रुप करी छे दशे दिशा जेणे एवा विश्वरुप मणिनी समान मनोवेगनो कई पण निर्णय करी शक्या नहि, के ए कोण छे ॥ ८० ॥ त्यारे कोईएक प्रवीण ब्राह्मणे कडं के निश्चय करवाने माटे एने केम नथी पूछता ? केमके बुद्धिमान पुरुष हाथमां कंकण होय तो आरसीमां जोवानी इच्छा करता नथी ॥ ८१ ॥ जो ए वाद करवाने आव्यो छे तो वादिओने जीतवाने आशक्त छे मन जेनुं एवा आपणे, सघळा शास्त्रो अने परमार्थना जाणकार एनी साथे वाद करीशुं ॥ ८२ ॥ पंडितोवडे भरेला आ नगरमा छ दर्शनोमांथी एवं कयुं दर्शन छे के जेने वास्तवीक रीते आपणे सघळा न जाणता होइए? ए सिवाय ए टुकी बुद्धिवाला बीजुं शुं कहशे ? ॥ ८३ ॥
आ प्रमाणे वातो सांभळीने एक ब्राह्मण आगळ आवीने मनोवेगने