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विचार करीने में जरा आ घंट वगाड्यो छे ॥ ९२ ॥ हे भट्ट ! हमे घासलाकडां वेचनारना पुत्र छाए अने हमे शास्त्रना मार्गने कई पण जाणता नथी; अने “ वाद " एवं नाम तो में निर्बुद्धिए हमणां तारे मोंढेथीज सांभळ्युं छे ॥ ९३॥ हे ब्राह्मण, तमारा भारतादि ग्रंथोमां शुं मारा सरखा घणा पुरुषो नथी ? जगतमां फक्त पारकांना दूषणज देखे छे. पोताना दूषण कोई जोतुं नथी ॥ ९४ ॥ कदाच आ सोनाना सिंहासन उपर मारा बेसवाथी तमारा मनमा हानि छ तो लो, उतरी जाउं छु. आ प्रमाणे कहीने ते अप्रमाण ज्ञाननो धारक मनोवेग तरतज सिंहासन उपरथी उतरीने नीच बेसी गयो ॥ ९५ ॥
आ प्रमाणे श्री अमितगति आचार्य कृत ' धर्म परिक्षा' संस्कृत ग्रंथनी गुजराती भाषा टीकामां त्रीजुं प्रकरण पूर्ण थयु. ॥ ३ ॥
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