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बळती आग्ने तो हुं सुखधी सहन करूं, परंतु सघळा शरीरने आताप करवावाळा आपना वियोगने सहन करी शकती नथी ॥ ६५ ॥ हे विभो, तमारी सामुं अग्निमां पडी मरी जवं सारुं छे. परंतु तमारी पाछळ विरह रुपी शत्रुथी ( वियोग ) मरी जाउं ते सारुं नाह ॥ ६६ ॥ हे नाथ, जे प्रमाणे वनमां शरणरहित मृगने सिंह मारे छे, ते प्रमाणे तमारा विना अहिंआ मने एकलीने कामदेव मारी नांखशे ॥ ६७ ॥ जो तमारे जवुंज होय तो जाओ. यमराजने घेर जता मारा जीवननो मार्ग पण कल्याणरुप थाओ, अने तमारो मार्ग पण कल्याणरूप थाओ ॥ ६८ ॥ आ प्रमाणे पोतानी प्रियानुं वचन सांगळीने ते शेठ कहेवा लाग्यो के, हे मृगलोचनी, एवं न बोल, स्थिर थईने घेर रहे, आववानी इच्छा न कर ॥ ६९ ॥ केमके राजा घणो व्याभिचारी छे. तने देखतांज ग्रहण करी लेशे, ते माटे हे कान्ता, तने घेर राखीनेज हुं जईश ॥ ७० ॥ राजानो स्वभाव एवो छे के तारा जेवी मनोहर स्त्रीने जोईने ते अवश्य छीनवी ले छे, जे उचितज छे के जेनी बरोबर बीजं नही एवा स्त्रीरत्नने कोण छोडे ! ॥ ७१ ॥ आ प्रमाणे पोतानी प्रियाने समजावीने अने धन धान्यथी भरेला घरने सोंपीने ते शेठ सेनानी साथे चाल्यो गयो || ७२ || सरागीनो एवोज स्वभाव होय छे के - ते मनवांछित वस्तु मळेथी पछी कोईनो पण विश्वास करतो नथी. जो ते वस्तुनो वियोग थई जाय तो मरण सुधी इच्छा करे छे ॥ ७३ ॥ कूतरो कूतरीने मेळवीने तेने जगतनी सघळी वस्तुओथी प्यारी समजे छे. जो ते गरीब छे तोपण पोतानी कृतरी जती रहेवाना भयथी इन्द्रने पण भसे छे ॥ ७४ ॥ नीच कूतरो कृमिजाल अने मलथी व्याप्त नीरसमांस मळेथी पण तेने अमृतनी समान माने छे ॥ ७५ ॥ जे