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जीवन चरित्रकी आवश्यकता । शुरू करते, उसके शीघ्र करनेके लिये अनेक साधनोंको मिलाते, कार्यमें उद्यम करते हुए जो अनेक आपत्ति, उपसर्गऔर कष्ट आजाते उनको समभावसे सहते, ज्यों ज्यों कष्ट पड़ते त्यों त्यों और अधिक उस संकल्प किये हुए कार्यके साधनमें लीन होते और अंततः उसे पूरा करके ही छोड़ते हैं। यदि कदाचित आयु कर्म शीघ्र ही क्षय हो जावे और इस शरीरसे उनकी आत्माका वियोग हो जावे तो भी वे कुछ खेदित नहीं होते किन्तु अपने दृढ़ संकल्प और उद्योगके कारण अपने पीछे ऐसा दृष्टान्त छोड़ जाते हैं जिससे उसी कामके पूरा करने में कोई न कोई उद्योगी निकल आते हैं। और उनका उदाहरण सदाके लिये इस जगत्में अंकित हो जाता है। __ मध्यम मनुष्य वे हैं जो काम तो विचारसे ही शुरू करते हैं और उसके साधन भी मिलाते हैं, पर यदि कष्ट, परीषह
और उपसर्ग आनकर खड़े हो जाते हैं तो कायर होकर उस कार्यको छोड़ बैठते हैं। यद्यपि इनमें कार्यको अंतिम हद्द तक पहुंचानेका साहस नहीं होता तो भी उत्तम कार्योंके करनेमें उत्साह दिखलाते हैं व कुछ प्रयत्न भी करते रहते हैं इससे उनका उपयोग हितरूप भावोंमें ही वर्तन किया करता है।
जघन्य पुरुष वे हैं जो पहले तो किसी उपयोगी कामका विचार ही नहीं बांधते हैं और यदि किसीके कुछ विचार भी होता है तो उनको कायरता, डर व आलस्य इतना सताता है जिससे वे अपने विचारका कुछ भी उपयोग नहीं कर सक्ते। ऐसे मनुष्य बुरे कामों में तो जल्दी तय्यार हो जाते हैं और उनको जिस तिस
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