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चाणक्यसूत्राणि
स्वरूप तो निश्चित करलें परन्तु अन्तिम निर्णय न करे । उसके विषय में अन्तिम निर्णय ही मन्त्र कहता है । अन्तिमनिर्णय केवल दो व्यक्ति करें । वह मन्त्र केवल प्रधानमंत्री तथा राजाको ही ज्ञात हो । इन दोनोंके अतिरिक्क तीसरे किसी भी व्यक्तिको मन्त्र के स्वरूपका, फलसे पहले ज्ञान न हो सकने की सुदृढ व्यवस्था होनी चाहिये ।
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( मन्त्रणाके अयोग्य )
अविनीतं स्नेहमात्रेण न मंत्रे कुर्वीत ॥ २० ॥
सत्यहीन ( कार्याकार्यविवेकहीन ) व्यक्तिको केवल स्नेही होनेसे हितकारी रहस्योंकी आलोचनामें सम्मिलित न करे ।
विवरण - ऐसा करना संकटशून्य नहीं है । कौटल्य में कक्षा है-" कार्यसामर्थ्यात् पुरुषसामर्थ्यं कल्पते " । कार्यकी गुरुता तथा उसके सम्पादनकी योग्यता अयोग्यता से ही कर्ताकी शक्तिकी कल्पना होती है । उसीसे उसे योग्य या अयोग्य ठहराया जाता है । कार्योंकी निपुणता दी मन्त्रियों का सामर्थ्य माना जाता है ।
( मंत्री की योग्यता )
श्रुतवन्तमुपधाशुद्धं मन्त्रिणं कुर्यात् ॥ २१ ॥
तर्कशास्त्र, दण्डनीति, वार्ता आदि विद्याओंके पारंगत तथा गुप्त रूपसे ली हुई लोभपरीक्षाओंसे शुद्ध प्रमाणित व्यक्तिको मंत्री नियुक्त करे ।
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विवरण -- कौटलीयमें मंत्रीके गुण निम्नप्रकार वर्णित हैं। मंत्री स्वदेशज शुद्धवंशज उदात्त संबन्धियोंवाला, राजकीय प्रमादपर राजाको दृढता से रोक और टोक सकनेवाला, समस्त प्रकारके यानोंके संचालन तथा वाहनमें कुशल, युद्ध, आयुष, गान्धर्व आदि विद्याओं में पारंगत, अर्थशास्त्रका ज्ञाता, स्वाभाविक सूझवाला, अविस्मरणशील अविकत्थनशील शीघ्रकारी मधुरस चितभाषी, अत्यन्त चतुर, प्रतिकार तथा प्रतिवचन में समर्थ, पुरुषार्थी,