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विडंगादिचूर्ण क्वाथो वा। जम्ब्वाम्रामलकीनां तु पल्लवानथ कुट्टयेत्
संगृह्य स्वरसं तेषामजाक्षारण योजयेत् ॥ ६८ ॥ विडंगातिविषा मुस्तं दारु पाठा कलिंगकम्६१॥
तं पिबेन्मधुना युक्तं रक्तातीसारनाशनम् । मरिचेन च संयुक्तं शोथातीसारनाशनम्॥६२॥!
जामुन, आम तथा आमलाके पत्तोंको कूट स्वरस निकाल वायविडंग, अतीस, नागरमोथा, देवदारु, पाढ़, इन्द्रयव, बकरीका दूध तथा शहद मिलाकर पीना चाहिये । इससे रक्काकालीमिर्च, इनका चूर्ण अथवा क्वाथ पीनेसे सूजनयुक्त अती-तिसार नष्ट होगा ॥ ६८ ॥सार नष्ट होता है ॥६१ ॥३२॥
तण्डुलीयकल्कः। वत्सकादिकषायः।
ज्येष्ठाम्बुना तण्डुलीयं पीतं च ससितामधु ॥६९॥ सवत्सकःसातिविषःसबिल्वः
पीत्वा शतावरीकल्कं पयसा भीरभुग्जयेत् । सोदीच्यमुस्तश्च कृतः कषायः
रक्तातिसारं पीत्वा वा तया सिद्धं घृतं नरः ॥७०॥ सामे सशूले सहशोणिते च
चौलाईका कल्क मिश्री तथा शहद मिलाकर चावलके चिरप्रवृत्तेऽपि हितोऽतिसारे ॥ ६३ ॥ जलके साथ पीनेसे रक्तातिसार नष्ट होता है । इसी प्रकार शताकुडेकी छाल, अतीस, बेलका गूदा, मुगन्धवाला व नागर- वरीका कल्क दूधके साथ पीनेसे तथा दूधका पथ्य लेनेसे रक्तामोथासे बनाया गया काथ आमसूल, रक्त सहित तथा अधिक तीसार नष्ट होता है । इसी प्रकार इन्हीं औषधियों द्वारा सिद्ध समयसे उत्पन्न हुए अतीसारको नष्ट करता है॥३३॥ तसे भी रकातीसार नष्ट होता है ॥ ६९ ॥७॥ दाडिमादिकषायः।
कुटजावलेहः। कषायो मधुना पीतस्त्वचो दाडिमवत्सकात्।। कुटजस्य पलं ग्राह्यमष्ठभागजले शृतम् ।
सद्यो जयेदतीसारं सरक्तं दुर्निवारकम् ॥६४॥ तथैव विपचेद भूयो दाडिमोदकसंयुतम् ॥ ७१ ॥ अनारके छिलकेका तथा कुडेकी छालका काथ शहदक साथ | यावश्चैव लसीकामं शृतं तमुपकल्पयेत् । पोनेसे तत्काल ही कठिन रक्तातीसार नष्ट होता है ॥६४॥ । तस्याद्धकर्ष तक्रेण पिबेद्रक्तातिसारवान् ।। ७२॥ बिल्वकल्कः ।
__ अवश्यमरणीयोऽपि मृत्योयाति न गोचरम् ।। गुडेन खादयद्वित्वं रक्तातीसारनाशनम् ।
कायतुल्यं दाडिमाम्बु भागानुक्ती समं यतः ॥७३॥ आमशूलविबन्धनं कुक्षिरोगविनाशनम् ॥६५॥
कुडेकी छाल एक पल लेकर महीन पीस अष्टगुण जलमें कच्चे बेलका कल्क गुड़के साथ खानेसे रक्तातीसार, आम
पकाकर अष्टमांश रहनेपर इसीके बराबर अनारका रस मिलाकर दोष, शूल, मलकी रुकावट तथा अन्य उदररोग नष्ट
जबतक गाढ़ा न हो जाय, तबतक पकाना चाहिये. गाढा हो
जानेपर इसको उतारकर छः माशेकी मात्रा मटेके साथ पानी होते हैं । ६५॥
चाहिये । इससे मुमूर्षु भी रक्तातिसारी आरोग्य लाभ करता है। बिल्वादिकल्कः।
इसमें काथके समानही अनारका रस छोड़ना चाहिये । क्योंकि बिल्वाब्दधातकीपाठाशुंठीमोचरसाः समाः।
जहां भागका विशेष वर्णन न हो, वहां समान भाग ही छोड़ा
जाता है । ७१-७३॥ पीता रुन्धन्त्यतीसारं गुडतक्रेण दुर्जयम् ६६ ॥ बेलका गूदा, नागरमोथा, धायके फूल, पाढ, सोंठ, मोच
तिलकल्कः। रस-सब समान भाग ले कल्क कर गुड़ तथा मठे में मिलाकर पानसे कठिन रकातिसार नष्ट होता है॥६६॥
कल्कस्तिलानां कृष्णानां शर्कराभागसंयुतः ।
आजेन पयसा पीतः सद्यो रक्तं नियच्छति ॥७४॥ शल्लक्यादिकल्कः।
काले तिलका कल्क १ भाग, शर्करा ४ भाग, दोनोंसे चतुर्गुण शल्लकीबदरीजम्बूप्रियालाम्रार्जुनत्वचः। बकरीका दूध मिलाकर पीनेसे तत्काल रक्तातीसार नष्ट पीताःक्षीरेण मध्वाढयाः पृथक्शोणितनाशनाः ६७ होता है ॥ ७४॥
शाल, बेर, जामुन, चिरौंजी, आम्र तथा अर्जुन-इनमेंसे | - किसीकी छालका कल्क दूध तथा शहदके साथ सेवन करनेसे| १इस अवलेहमें कुड़ेकी छालका काथ छाना नहीं जाता, रक्तातीसारको नष्ट करता है ॥६॥
अतः कल्क महीन छोड़ना चाहिये।