Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press

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Page 316
________________ धिकारः] भाषाटीकोपेतः। (२८९) - लज्जाल, बच, सोंठ, मिर्च, पीपल और हल्दीसे सिद्ध तैलका तुण्डिचिकित्सा। नस्य स्तनोंको उठाता है । इसी प्रकार मठेके साथ माधवी मृत्पिण्डेनाग्नितप्तेन क्षीरसिक्तेन सोष्मणा । (कुन्द ) की जड़को पीसकर पीनेसे कमर पतली होती स्वेदयेदुत्थितां नाभि शोथस्तेन प्रशाम्यति ॥४॥ मिट्टीके ढेलेको अग्निमें तपा दूधमें बुझाकर गरम गरम उसी योनिसंकोचनं वशीकरणं च । दूधके सिञ्चनसे नाभिशोथ शान्त होता है ॥४॥ स्याच्छिथिलापि च गाढा नाभिपाकचिकित्सा। सुरगोपाज्याभ्यङ्गतो योनिः । नाभिपाके निशालोध्रप्रियङ्गुमधुकैः शृतम् । • शववहनस्थितबन्धन तैलमभ्यञ्जने शस्तमेभिर्वाप्यवचूर्णनम् ॥ ५ ॥ रज्ज्वा सन्ताडनाद्धि दयितेन ।। ६५॥ । नाभिपाकमें हल्दी, लोध, प्रियङ्गु व मौरेठीसे सिद्ध तैल नश्यत्यबाद्वेषः पत्यो सहजः कृतोऽथवा योगैः। लगाना अथवा चूर्णका उर्राना हितकर है ॥ ५॥ दस्वैव दुग्धभक्तं विप्रायोत्पाट्य सितबलामूलम् ।। पुष्ये कन्यापिष्टं दत्तमनिच्छाहरं भक्ष्ये ॥६६॥ अहिण्डिकाचिकित्सा। इन्द्रगोप और घीकी मालिशसे ढीली योनि कड़ी हो जाती सोमग्रहणे विधिवत्केकिशिखामूलमुद्धृतं बद्धम् । है। तथा पतिसे मुर्देकी रथीके बन्धनकी रस्सीसे ताडित होनेसे जघनेऽथ कन्धरायांक्षपयत्याहिण्डिकां नियतम्॥६॥ स्वाभाविक अथवा कृत्रिम पतिद्वेष नष्ट होता है । इसी प्रकार सप्तदलपुष्पमरिचं पिष्टं गोरोचनासहितम् । ब्राह्मणको दूध भात खिलाकर पुष्यनक्षत्र में सफेद खरेटीकी जड़ पीतं तद्वत्तण्डुलभक्तकृतो दुग्धपिष्टकपाशः॥७॥ उखाड़ कन्यासे पिसवाकर भोजनमें मिला खिलानेसे पतिका जम्बुकनासा वायसजिह्वा नाभिर्बराहसंभूता । पत्नीकी ओर प्रेम होता है॥ ६५॥ ६६ ॥ कास्यं रसोऽथ गरलं प्रावृड्भेकस्य वामजङ्घास्थि ८ इति स्त्रीरोगाधिकारः समाप्तः । इत्येकशोऽथ मिलितं विधृतं प्रीवादिकटिदेशे । अहिण्डिकाप्रशमनमभ्यङ्गो नातिपथ्यविधिः ॥९॥ अथ बालरोगाधिकारः। चन्द्रग्रहणमें विधिपूर्वक मयूराशखाकी जड़ उखाड़ कमर या गर्दनमें बान्धनेसे अहिंडिका रोग अवश्य नष्ट होता है । इसी प्रकार सप्तपर्णके फूल, काली मिर्च व गोरोचनको पीसकर सामान्यक्रमः। धके साथ पिलाना चाहिये। अथवा चावलके भातकी जली कुष्ठवचाभयाब्राह्मीकमलं क्षौद्रसर्पिषा। पिछी पीसकर दूध व शहद मिलाकर पिलाना चाहिये। इसी प्रकार शृगालकी नाक, कौएकी जिह्वा, शूकरकी नाभि, कांसा. वर्णायुःकान्तिजननं लेहं बालस्य दापयेत् ॥ १॥ पारद और सर्पविष तथा बर्साती मेढककी बामजंघाकी हही, स्तन्याभावे पयश्छागं गव्यं वा तद्गुणं पिबेत् । सब एकमें मिलाकर गर्दन या कमर आदिमें बांधना अहिंडिका कर्कन्धोर्गुडिकां तप्तां निर्वाप्य कटुतैलके। शान्त करता है। इसमें अभ्यङ्ग या पथ्यविधि विशेष नहीं तत्तलं पानतो हन्ति बालानामुल्बमुद्धतम् ॥२॥ है ॥ ६-९॥ व्योषशिवोग्रा रजनी कल्कं वा पीतमथ पयसा । उल्बमशेष हरते पटुतां बालस्य चात्यन्तम् ॥ ३॥ अनामकचिकित्सा। अनामके घुघुरिकाबुक्कामरिचरोचनाः। कुठ, बच, बड़ी हरोंका छिस्का, ब्राह्मी व कमलके चूर्णको नवनीतं च संमिश्य खादेत्तद्रोगनाशनम् ॥१०॥ शहद और घीके साथ मिलाकर बालकको देना चाहिये । इससे बालकका वर्ण, आयु और कान्ति वढती है । और तैलाक्तशिरस्तालुनि सप्तदलार्कस्नुहीभवं क्षीरम् । माके दूध न होनेपर बकरी अथवा गायका दूध तद्गुण ही| दत्त्वा रजनीचूर्णे दत्ते नश्येदनामको रोगः ॥११॥ होता है। उसे पीना चाहिये । बेरकी गोली बना तपाकर| लेहयेच्च शुना बालं नवनीतेन लेपितम् । । तैलमें बुझाना चाहिये। यह तेल बालकोंके पिलानेसे जरायुके स्फुटकपत्रजरसोद्वर्तनं च हि तद्धितम् ॥१२॥ अंशको साफ करता है। इसी प्रकार त्रिकटु, हर्र, बच, व अनामकमें घुघुरिका (कीट ) के आगेका मांस, काली हल्दीके कल्कको दूधके साथ पिलानेसे जरायु दोषको नाशता | मिर्च, गोरोचन और मक्खन मिलाकर खानेसे यह रोग नष्ट है। तथा बालकको फुर्तीला बनाता है ॥ १-३॥ होता है । शिरमें तालुपर तैल चुपर सप्तदल, आक और सेहुण्डके

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