Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press

View full book text
Previous | Next

Page 338
________________ भाषाटीकोपेतः । विकारः ] वायविडंग, काली मिर्च प्रत्येक १ भाग ले चूर्ण कर सब एकमें घोटकर चूर्ण बना लेना चाहिये । इसे २ या ३ माशेकी मात्रा से खाना चाहिये । यह रसायन-शूल, अम्लपित्त, सूजन, ग्रहणी, यक्ष्मा और पेटके रोगोंको नष्ट करता है । यह महारसायन है इसमें नियमतः कोई परहेज भी नहीं है ॥ १२८-१३४ ॥ । नेपाली ताम्रके पतले पत्र औरं गन्धक आमलासार समान भाग लेना चाहिये । फिर बड़ी मंडियों में आधा गन्धक नीचे, बीचमें ताम्र तथा आधा गन्धक ऊपर रखना चाहिये । फिर एक छोटे शिकोरेको ले ताम्र व गन्धकके ऊपर ढक देना चाहिये और उसकी सन्धियाँ मिट्टी व भातके लेपसे बन्द कर देनी चाहिये । उसके ऊपर बालू भर बड़े ढक्कनसे हंडीका मुख बन्द कर ऊपरसे कपड़ मिट्टी कर देनी चाहिये तथा हण्डीके नीचे तनुपत्रीकृतं ताम्रं नैपालं गन्धकं समम् । भी कपर मिट्टी कर देनी चाहिये । जिससे हण्डी आंचसे फूट न दत्त्वा चोर्ध्वमधो मध्ये स्थालिकामध्य संस्थितम् ॥ जावे । कपड़मिट्टी के सूख जानेपर भंडिया चूल्हेपर चढ़ाकर कृत्वा स्वल्पपिधानेन स्थालीमध्ये पिधाय च । नीचेसे ३ घण्टे तक आँच देनी चाहिये । फिर उसे स्वाङ्ग शर्कराभक्तलेपेन लिप्त्वा सन्धि तदूर्ध्वतः ॥ १३६ ॥ शीतल हो जानेपर उतार कर निकाल लेना चाहिये । इस प्रकार ताम्ररसायनम् । १३८ वालुकापूरितस्थाल्यां पिहितायां पुनस्तथा । भस्मीभूत ताम्र १ तोला और शुद्ध गन्धक १ तोला ले गन्धसुलिप्तायां च यामेकमधो ज्वालां प्रदापयेत् ॥ १३७॥ कको लोहेके पात्रमें अग्निपर गरम करना चाहिये । गन्धक पिघल जानेपर उपरोक्त ताम्र भस्म १ तोला तथा काजीसे तत आकृष्टताम्रस्य मृतस्य त्विह योजना | अथ कर्षे गन्धकस्य वह्निस्थ लोहपात्रगम् ॥ ॥ शुद्ध पारद १ तोला मिलाकर घोटना चाहिये । खूब घुट जानेपर आठ बिन्दु घी छोड़ना चाहिये । जब सब मिल जावे, तब उसे शिलापुत्रेण संमर्ध द्रुतं घृष्टं पुनः पुनः । | निकाल लेना चाहिये । तथा मुसलीमें लगा हुआ भी खुरच लेना कृत्वा देयं मृतं ताम्रं कर्षमानं ततः पुनः ॥ १३९ ॥ चाहिये । फिर इसे मुण्डीका रम ८ तोला मिलाकर घोटना रसोऽम्लमथितः शुद्धस्तावन्मात्रः प्रदीयते । चाहिये । फिर उसे अभिपर चढे लौहपात्रमें छोड़कर उस समयततस्तथैव समर्थ पुनराज्यं प्रदापयेत् ॥ १४० ॥ तक घोटना चाहिये, जबतक कि द्रव्य क्षीण न हो जावे । फिर अष्टविन्दुकमात्रं च मर्दयेन्मूच्छितं यथा । | उसे निकाल पीसकर मुण्डीके ही रससे घोटकर एक गोली बना सर्वं स्यात्तत्समाकृष्य शिलापुत्रादितो दृढम् ॥१४१॥ लेनी चाहिये। फिर उस गोलीको एक महीन कपड़े में लपेटना चाहिये और दूसरे कपडे में गोली के समान भाग ही मिलित संहृत्यालम्बुषरसप्रसृतेन विलोडितम् । सोंठ, मिर्च व छोटी पीपलका कल्क रखकर उसी कल्कमें पुनस्तथैव वह्निस्थलौहपात्रे विमर्दयेत् ॥ १४२ ॥ गोलीवाली पोटली रखनी चाहिये । फिर इसी पोटलीको | दोलायन्त्रकी विधिसे एक भंडिया में घी छोड़कर उसी में एक डोरेमें बांधकर भंड़ियाके मुखपर बीचोंबीच रखे हुए डंडेमें बान्धकर लटका देनी चाहिये । पर यह ध्यान रहे कि पोटली घीमें डूबी रहे, पर भंडिया की पेंदीमें बैठे नहीं, किन्तु हिलती रहे । इस प्रकार भंडिया चूल्हे पर चढाकर नीचे से आँच | देनी चाहिये । जब घीसे झाग उठने बन्द हो जावें, और गोलीकी पोटली दृढ हो जावे, तब उतार ठण्डा कर ताम्रगोलीको निकाल कर घोट लेना चाहिथे । इस सिद्ध रसकी ५ गुजा ( वर्तमानकालके आधी गुञ्जासे १ गुञ्जातक ) घी ५ रत्ती त्रिकटु और त्रिफलाकी प्रत्येक ओषधिका चूर्ण ५ गुञ्जा मिलाकर सेवन करना चाहिये । ऊपरसे मट्ठा पीना चाहिये । | तथा अम्लपित्त में केवल त्रिफलाका चूर्ण और गुनगुना जल ही देना चाहिये। सातवें सातवें दिन १ गुञ्जा बढ़ाना चाहिये । इसका प्रयोग १ माशे (६ रत्ती ) तकका है । फिर इसी प्रकार कम करना चाहिये । यह योग, यक्ष्मा, ग्रहणी, पित्तशूल, | , यावद् द्रवक्षयं पश्वादाकृष्य संप्रपेषितम् । अलम्बुषार सेनैव गुडकं संप्रकल्पयेत् ॥ १४३ ॥ तत्पिण्डं वस्त्रविस्तीर्णे पिण्डे त्रिकटुजे पुनः । वसनान्तरिते दत्त्वा पोट्टलीं कारयेद् बुधः ॥ १४४॥ ततस्तां पोट्टलीमाज्यमग्नां कृत्वा विधारिताम् । सूत्रेण दण्डसंलग्नां पाचयेत्कुशलो भिषक् ॥ १४५॥ यदा निष्फेनता चाज्ये पुटिका च दृढा भवेत् । तदा पक्कं तमाकृष्य पञ्चगुञ्जातुलाघृतम् ॥१४६॥ त्रिकटुत्रिफला चूर्ण तुल्यं प्रातः प्रयोजयेत् । तक्रं स्यादनुपानं तु अम्लपित्तोच्छ्रये पुनः || १४७॥ त्रिफलैव समा देया कोष्णं वारि पिबेदनु । सप्तमे दिवसे रक्तिवृद्धिस्ताम्रात्तु माषकम् ॥ १४८ ॥ यावत्प्रयोगश्च तथैवापकर्षः पुनर्भवेत् । योगोऽयं ग्रहणीयक्ष्मपित्तशूलाम्लपित्तहा ॥ १४९ ॥ रसायनं चैतदिष्टं गुदकीलादिनाशनम् । न चात्र परिहारोऽस्ति विहाराहारकर्मणि ॥ १५० ॥ रखना उत्तम होगा | ( ३११ ). १ ताम्र व गन्धकको शराव सम्पुट में रखकर बड़ी हाँडी में

Loading...

Page Navigation
1 ... 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374