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चक्रदत्तः।
[बालरोगा
दूधको लगाकर ऊपरसे हल्दीका चूर्ण उर्शनेसे अनामक रोग महीनेमें १ रत्ती औषधि शहद, दूध, घी व मिश्रीसे पतली कर नष्ट होता है। बालकके शरीरमें मक्खनका लेप कर कुत्तेसे चटा-पिलाना चाहिये । महीनेकी वृद्धिके साथ साथ औषध मात्रा भी मा चाहिये ॥१०-१२॥
| एक एक रत्ती प्रतिमास बढाना चाहिये । सालभरतक यही क्रम
रखनेके अनन्तर फिर प्रति वर्ष १ माशा सोलह वर्षतक बढाना अनामकहरं तैलम् ।
|चाहिये* ॥ १८-२०॥ वैलस्य भागमेकं मूत्रस्य द्वौ च शिम्बिदलरसस्य ।। गव्यं पयश्चतुर्गुणमेवं दत्त्वा पचेत्तैलम् ।
हरिद्रादिकाः । तेनाभ्यंगः सततं रोगमनामकाख्यमपहरति ॥१३॥ हरिद्राद्वययष्टयाह्वसिंहीशक्रयवैः कृतः।
एक भाग तैल, २ भाग गोमूत्र, २ भाग सेमकी पत्तीका | शिशोवरातिसारनः कषायस्स्तन्यदोषजित् ॥२१॥ रस, ४ भाग गोदुग्ध छोड़कर तैल पकाना चाहिये । इससे सदा हल्दी, दारुहल्दी, मोरेठी, कटेरी व इन्द्रयवका क्वाथ बालमालिश अनामक रोग नष्ट करती है ॥ १३ ॥
कोंके ज्वरातिसारको नष्ट करता तथा स्तन्य दोषको जीतता कजलम् ।
है ॥२१॥ आर्क तूलकमाविकरोमाण्यादाय केशराजस्य ।
चातुर्भद्रचूर्णम् । स्वरसेनाक्ते वस्त्रे कृत्वा वति च तैलाक्ताम् ॥ १४॥ घनकृष्णारुणाशृङ्गीचूर्ण क्षौद्रेण संयुतम् । तज्जातकज्जलाजितलोचनयुगलोऽप्यलंकृतो बालः । शिशोवरातिसारनं कासश्वासवमीहरम् ॥२२॥
मनामकरोगं क्षपयति भूतादिकं चापि ॥१५॥ नागरमोथा, छोटी, पीपर, मजीठ व काकड़ासिगीका आककी रुई व भेड़के बाल ले भांगरेके रसमें तर कर सुखा | चूर्ण शहदके साथ बालकको देनसे ज्वरातिसारको नष्ट बत्ती बना तेलमें डुबोकर जलाना चाहिये । इससे बनाये गये | करता तथा कास, श्वास व वमनको शान्त करता काजलको बालककी आँखोंमें लगानेसे अनामकरोग तथा भूतादि है॥२२॥ बाधा शान्त होती है ॥ १४ ॥ १५॥
धातक्यादिलेहः। अपरे प्रयोगाः ।
धातकीबिल्वधन्याकलोधेन्द्रयववालकैः। चालनिकातलसंस्थितपोतं संप्लाव्य गव्यमूत्रेण। | लेहः क्षौद्रेण बालानां ज्वरातीसारवान्तिजित्॥२३॥
ओकोदशालिकायां रजकक्षारोदकस्नानम् ।। १६॥ धायके फूल, बेल, धनियां, लोध व इन्द्रयवसे बनाया गया दासक्रयणश्रावणवराटिकारसेन्द्रपूरिता धृता कण्ठे। लेह शहदके साथ बालकांके ज्वरातिसार और वमनको शांत नलिनीदले च शयनं सुकष्टमनामकाख्यरोगनम १७ करता है ॥ २३ ॥ लड़केको धोवीके पाटेपर खड़ा कर चलनीसे गोमूत्र
रजन्यादिचूर्णम् । छोड़कर स्नान कराना चाहिये । फिर धोबीके क्षार मिश्रित
रजनीदारुसरलश्रेयसीबृहतीद्वयम् । जलसे स्नान कराना चाहिये । इसी प्रकार नौकर द्वारा खरीदी गयी किसी योगी या पाखण्डीके पासकी कौड़ी पारद भरकर
पृश्निपणी शताह्वा च लीढं मासिकसर्पिषा ॥२४॥ गलेमें बांधनेसे अथवा कमलके पत्तोंकी शय्यापर सुलानेसे अना
ग्रहणीदीपनं हन्ति मारुताति सकामलाम् । मकरोग दूर होता है ॥ १६ ॥ १७ ॥
धरातीसारपाण्डुम्नं बालानां सर्वशोथनुत् ॥२७॥
हल्दी, देवदारु, सरल धूप, गजपीपल, छोटी कटेरी, बड़ी सामान्यमात्राः।
कटेरी, पिठिवन और सौंफके चूर्णको शहद व घीके साथ चाटभैषज्यं पूर्वमुद्दिष्टं नराणां यज्वरादिपु। नेसे वालकोंकी ग्रहणी दीप्त होती, वायुकी पीड़ा, कामला, ज्वरादेयं तदेव बालानां मात्रा तस्य कनीयसी ॥१८॥तिसार, पांडु और समस्त शोथ नष्ट होते हैं ॥ २४ ॥२५॥ प्रथमे मासि जातस्य शिशोभैषजरक्तिका।
* जवान पुरुषके लिये किसी औषधकी जितनी मात्रा हो अवलेह्या तु कर्तव्या मधुक्षीरसिताघृतैः ॥ १९ ॥ सकती है, उससे ,२० भाग १ मासके बालकको, २६ भाग २ एकैकां वर्धयेत्तावद्यावत्संवत्सरो भवेत् । मासके बालकको भाग ३ मासके बालकको, ४४ भाग चार तदूर्ध्व माषवृद्धिः स्याद्यावदाषोडशाब्दिकाः ॥२०॥ मासके लिये इसी प्रकार बढाते हुए १६ भाग, एक वर्षवालेके
मनुष्योंके लिये ज्वरादिकोंमें जो ओषधियां बतायी गयी हैं. लिये भाग २ वर्षवालेके लिये इसी प्रकार बढाते हुए १६ यही बालकोंको देना चाहिये । पर मात्रा छोटी रहे । पहिले वर्ष में पूर्ण मात्रा देनी चाहिये ।।