Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press

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Page 318
________________ धिकारः] भाषाटीकोपेतः। - - पन्न - w मिश्यादिलेहः। बेलका गूदा, घायके फूल, सुगन्धवाला, लोध व गजपीपमिशी कृष्णाञ्जनं लाजा शृङ्गीमरिचमाक्षिकः। लका क्वाथ या अवलेह शहद मिलाकर पिलानेसे बालकोंके दस्त लेहः शिशोर्विधातव्यश्छर्दिकासज्वरापहः ।। २६॥ बन्द होते हैं ॥ ३२ ॥ सौंफ, काला सुरमा, खील, काकड़ाशिंगी, काली मिर्च व , समङ्गादिवाथः। शहदका लेह बालकोंकी वमन, खांसी और ज्वरको नष्ट करता समाधातकीलोध्रशारिवाभिः शृतं जलम् । दुर्धरेऽपि शिशोर्देयमतीसारे समाक्षिकम् ॥ ३३ ।। शृङ्गयादिलेहः। लज्जालुके बीज, 'धायके फूल, लोध, व शारिवासे सिद्ध क्वाथको शहदके साथ बालकोंके कठिन अतिसारमें देना शृङ्गी समुस्तातिविषां विचूर्ण्य चाहिये ॥३३॥ लेहं विदध्यान्मधुना शिशूनाम् । कासज्वरच्छर्दिभिरर्दितानां नागरादिकाथः। समाक्षिकां चातिविषां तथैकाम् ॥२७॥ काकड़ासिंही, अतीस व नागरमोथाका चूर्णकर शहदके साथ नागरातिविषामुस्तावालकेन्द्रयवैः शृतम् । अथवा अकेले अतीस शहदके साथ चटानेसे बालकोंकी खांसी, __कुमारं पाययेत्प्रातः सर्वातिसारनाशनम् ।। ३४॥ ज्वर और वमन शांत होती है ॥ २७ ॥ सोंठ, अतीस, नागरमोथा, सुगन्धवाला व इन्द्रयवके क्वाथको प्रातःकाल पिलानसे समस्त अतीसार नष्ट होते छर्दिचिकित्सा। पीतं पीतं वमेद्यस्तु स्तन्यं तन्मधुसर्पिषा। द्विवार्ताकीफलरसं पञ्चकोलं च लेहयेत् ॥ २८॥ समङ्गादियवागूः। आम्रास्थिलाजसिन्धूत्थैर्लेहः क्षौद्रेण छर्दिनुत् ॥२९॥ समझा धातकी पद्मं वयस्था कच्छुरा तथा । पिप्पलीमरिचानां तु चूर्ण समधुशर्करम् । पिष्टरेतैर्यवागूः स्यात्सर्वातीसारनाशिनी ॥३५॥ रसेन मातुलुङ्गस्य हिक्काच्छर्दिनिवारणम् ॥ ३० ॥ लजालुके बीज, धायके फूल, कमल, बच व कौंचके जो बालक दूध पीकर वमन कर देता है, उसे छोटी बडी बीजको पीसकर बनायी गयी यवागू सब अतीसारोंको नष्ट कटेरीके फलोंका रस व पञ्चकोलका चूर्ग शहद व घी मिलाकर करती है ॥ ३५ ॥ पिलाना चाहिये । इसी प्रकार आमकी गुठली, खील व सेंधा लाजायोगः। नमकका चूर्ण शहदके साथ चटानेसे वमन शान्त करता है। तथा छोटी पीपल व काली मिर्चका चूर्ण शहद, शक्कर और विल्वमूलकषायेण लाजाश्चैव सशर्कराः। बिजौरे निम्बके रसके साथ हिक्का और वमनको शान्त करता आलोय पाययेद्वालं छद्येतीसारनाशनम् ।। ३६ ।। है ॥२८-३० ॥ बेलकी जड़के काढेके साथ खील व शक्कर मिलाकर बालकको पेट्यादिपिण्डः। पिलानेसे सब अतीसार नष्ट होते हैं ॥३६॥ पेटीपाठामूलाजम्ब्वः सहकारवल्कलतः कल्कः । • प्रियङ्ग्वादिकल्कः। इत्येकशश्च पिण्डो विधृतो हृन्नाभिमध्यताल्वादो। छद्यतीसारजवेगं प्रबलं धत्ते तदेव नियमेन ॥३१॥ कल्कः प्रियंगुकोलास्थिमध्यमुस्तरसाजनैः।। क्षौद्रलीढः कुमारस्य छर्दितृष्णातिसारनुत् ॥३७॥ • पेटी (पाढल) की जड़, पाढकी जड़, जामुनकी व आमकी प्रियंगु, बेरकी गुठलीकी मींगी, नागरमोथा व रसौतके कल्कको ' छालका एक गोला बनाकर हृदय व नाभिके बीचमें तथा तालुपर घुमानेसे निःसन्देह प्रबल वमन और अतीसारका वेग शांत | शहदमें मिलाकर चाटनेसे बालककी प्यास, वमन तथा दस्त होता है ॥३१॥ नष्ट होते हैं ॥ ३७॥ बिल्वादिक्वाथः। रक्तातिसारप्रवाहिकाचिकित्सा । बिल्वं च पुष्पाणि च धातकीनां मोचरसः समङ्गा च धातकी पद्मकेशरम् । जलं सलोभ्रं गजपिप्पली च। पिष्टैरेतैर्यवागूः स्याद्रक्तातीसारनाशिनी ॥ ३८॥ काथावलेही मधुना विमिश्री लेहस्तेलसिताक्षीदतिलयष्टथाकल्कितः । बालेषु योज्यावतिसारितेषु ॥३२॥ बालस्य रुन्ध्यान्नियतं रक्तस्रावं प्रवाहिकाम् ॥३९॥

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