Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press

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Page 323
________________ ( २९६ ) 'चक्रदत्तः । [ बालरोगा - आता है, बालकका शरीर कम्पाता है, दूध नहीं पीता, दनं, शुक्लपुष्पं, पञ्च ध्वजाः, पञ्च प्रदीपाः, पञ्च वटकाः, मुट्ठी बांधता, रोता तथा ऊपरको देखता है । उसके लिये ऐशान्यां दिशि बलिर्दातव्यः । शान्त्युदकेन स्नापयेबलि देनेकी यह विधि है कि नदी के दोनों किनारोंकी मिट्टीको च्छिवनिर्माल्य सर्प निर्मोकगुग्गुलु निम्बपत्रवालकघृतधूपं लेकर पुतला बना गन्ध, फूल, पान, लाल चन्दन, लाल फूल, दद्यात् “ॐ नमो नारायणाय अमुकस्य व्याधिं चूर्णच लाल ७ पताका, ७ दीपक, ७ स्वस्तिक, पक्षियोंका मांस, चूर्णय हन हन स्वाहा” चतुर्थे दिवसे ब्राह्मणं भोजयेत्ततः सम्पद्यते शुभम् ।। ९२ ।। शराब व उत्तम भातकी दक्षिणदिशा के चौराहे में अपराह्नमें बलि देनी चाहिये । और शिवनिर्माल्य, गुग्गुलु, सरसों, नीमकी पत्ती व मेढा के सींगसे धूप करनी चाहिये । तथा यह मन्त्र पढना चाहिये। “ ॐ नमो नारायणाय बालकस्य व्याधिं हन न मुच मुच हाय ह्रासय स्वाहा " । चौथे दिन ब्राह्मण भोजन करावे । इस प्रकार सुख होता है ॥ ९० ॥ मुखमण्डिकाचिकित्सा । पांचवें, दिन, महीने और वर्षमें कठपूतनानाम मातृका ग्रहण करती है। उसके ग्रहण करते ही ज्वर आता है, शरीर कम्पता है, दूध नहीं पीता, मुट्टी बांधता है, । उसके लिये इस प्रकार बलि देना चाहिये । कुम्हारके चाककी मिट्टी ले पुतला बना गन्ध, ताम्बूल, सफेद भात, सफेद फूल, ५ पताकाएँ ५ दीपक, ५ | बड़े इनकी ऐशान्य दिशामें बलि देनी चाहिये । शान्तिजलसे चतुर्थे दिवसे मासे वर्षे वा गृह्णाति मुखमण्डिका नाम स्नान कराना चाहिये और शिवनिर्माल्य, सांपकी केंचुल मातृका । तया गृहीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वरः । ग्रीवां गुग्गुलु, नीमकी पत्ती, सुगन्धवाला और घीसे धूप देनी नामयति, अक्षिणी उन्मीलयति, स्तन्यं न गृह्णाति, चाहिये ! और “ॐ नमो नारायणाय अमुकस्य व्याधिं रोदिति, स्वपिति, मुष्टिं बध्नाति । बलिं तस्य प्रवक्ष्यामि चूर्णय चूर्णय हन हन स्वाहा " यह मन्त्र पढ़ना चाहिये । चौथे सम्पद्यते शुभम् । नद्युभयतमृत्तिकां गृहीत्वा दिन ब्राह्मण भोजन कराना चाहिये । इस प्रकार शुभ | होता है ॥ ९२ ॥ पुत्तलिकां कृत्वा उत्पलपुष्पं, गन्धताम्बूलं, दश ध्वजाः, चत्वारः प्रदीपाः, त्रयोदश स्वस्तिकाः, मत्स्यमांससुरा, अप्रभक्तं च उत्तरस्यां दिशि अपराह्णे चतुष्पथे बलि दद्यात् । आद्यः मासिको धूपः “ॐ नमो नारायणाय हन हन मुच्च मुञ्च स्वाहा " चतुर्थे दिवसे ब्राह्मणं भोजयेत्ततः सम्पद्यते शुभम् ॥ ९१ ॥ चौथे दिन चौथे महीने अथवा चौथे वर्ष में मुखमण्डिका नाम मातृका ग्रहण करती है, उसके ग्रहण करते ही पहिले ज्वर होता है, गर्दन चलाता है, आंखें निकालता है, दूध नहीं पीता, रोता, सोता तथा मुट्ठी बांधता है। उसके लिये बलि इस प्रकार देना चाहिये । नदीके दोनों किनारों की मिट्टी से पुतला बना नीलकमलके फूल, गन्ध, ताम्बूल, दश पताकाएँ, ४ दीपक, १३ स्वस्तिक, मछली, मांस, शराब, भात उत्तर दिशामें सायङ्काल चौराहेपर बलि देनी चाहिये । तथा प्रथम मास में कही हुई धूप देनी चाहिये ।“ ॐ नमो नारायणाय हन न मुच मुच स्वाहा " । चौथे दिन ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिये । तब सुखी होता है ॥ ९१ ॥ शकुनिका चिकित्सा | | षष्ठे दिवसे मासे वर्षे वा गृह्णाति शकुनिका नाम मातृका । तया गृहीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वरः । गात्रभेदं च दर्शयति, दिवारात्रावुत्थानं भवति. ऊर्ध्व निरीक्षते । बलिं तस्य प्रवक्ष्यामि येन सम्पद्यते शुभम् । पिष्टकेन पुत्तलिकां कृत्वा शुक्लपुष्पं, रक्तपुष्पं, पीतपुष्पं गन्धताम्बूलं, दशप्रदीपाः, दशध्वजाः, दश स्वस्तिका, दश मुष्टिकाः, दश वटकाः, क्षीरजम्बूडिका, मत्स्यमांससुरा आग्नेय्यां दिशि निष्क्रान्ते मध्याह्ने बलिं दापयेत् । शान्त्युदकेन स्नापयेत् । शिवनिर्माल्यर सोनगुग्गुलुसर्प - निर्मोक निम्बपत्रघृतैर्धूपं दद्यात् । "ॐ नमो नारायणाय चूर्णय चूर्णय हन हन स्वाहा " चतुर्थे दिवसे ब्राह्मणं भोजयेत्ततः सम्पद्यते शुभम् ॥ ९३ ॥ कठपूतनामातृका चिकित्सा । दिवसे मासे वर्षे वा गृह्णाति कठपूतना नाम मातृका । तया गृहीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वरः । गात्रमुद्वेजयति, स्तन्यं न गृह्णाति, मुष्टिं च बध्नाति बलिं तस्य प्रवक्ष्यामि येन सम्पद्यते शुभम् । कुम्भकारचक्रस्य छठे दिन, महीने और वर्ष में शकुनिका ग्रहण करती है । उसके ग्रहण करते ही पहिले ज्वर आता है, शरीर टूटता है, दिनरात चौकता है, ऊपर देखता है। उसके लिये इस प्रकार बलि देना चाहिये । पिट्ठीका पुतला बना सफेद फूल, लाल स्वस्तिक, दश लड्डू, दश बडे, दूधकी जलेबी, मछली, मांस फूल, पीले फूल, गन्ध, ताम्बूल, दशदीप, दशपताकाएँ, दशशराबकी आग्नेय दिशामें मध्याह्न बीत जानेपर बलि देनी चाहिये तथा शान्तिजलसे स्नान कराना चाहिये और शिवनिर्माल्य, मृत्तिकां गृहीत्वा पुत्तलिकां निर्माय गन्धताम्बूलं, शुक्लौ-लहसुन, गुग्गुलु, सांपकी केंचुल नामकी पत्तीकी धूप देन

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