Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press

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Page 324
________________ धिकारः] भाषाटीकोपेतः। (२९७) चाहिये । और “ॐ नमो नारायणाय चूर्णय चूर्णय हन हन करता, शरीर कम्पाता है । उसके लिये बलि कहते हैं-जिससे स्वाहा"। इस मन्त्रका जप करना चाहिये । और चौथे दिन सुख होता है । लाल पीली पताकाएँ, चन्दन, फूल, पूडी, पापड़ ब्राह्मण भोजन कराना चाहिये । तब शांति होती है ॥ ९३ ॥ मछलियां, मांस, शराब, जलेबियां इनकी सबेरे एक किनारे बलि | देना चाहिये और यह मन्त्र पढना चाहिये । “ॐ नमो नाराशुष्करेवतीचिकित्सा । यणाय चतुर्दिङ्मोक्षणाय व्याधि हन हन मुञ्च मुञ्च ॐ ह्रीं फट् सप्तमे दिवसे मासे वर्षे वा यदा गृह्णाति शुष्करेवती स्वाहा" । चौथे दिन ब्राह्मण भोजन करावे । तब शुभ होता, नाम मातृका । तया गृीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वरः।। है ॥ ९५॥ गात्रमुद्वजयति, मुष्टिं बध्नाति, रोदिति । बलिं तस्य भूसूतिकाचिकित्सा। प्रवक्ष्यामि येन सम्पचते शुभम् । रक्तपुष्पं, शुक्लपुष्पं, | नवमे दिवसे मासे वर्षे वा गृह्णाति भूसूतिका नाम गन्धताम्बूलं, रक्तोदनं, कृसरा, प्रयोदश स्वस्तिकाः, मत्स्यमांससुरास्त्रयोदश ध्वजाः, पञ्च प्रदीपाः, पश्चिम-I: मातृका । तया गृहीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वरः । नित्यं दिग्भागे प्रामनिष्कासे अपराह्ने वृक्षमाश्रित्यबलिं| छर्दिर्भवति,गात्रभेदं दर्शयति, मुष्टिं बध्नाति। बलिं तस्य दद्यात् । शान्त्युदकेन स्नानं गुग्गुलुमेषशृङ्गीसर्षपो |प्रवक्ष्यामि येन सम्पद्यते शुभम् । नाभयतटमृत्तिकां शीरवालकघृतधूपयेत् । “ ॐ नमो नारायणाय | गृहीत्वा पुत्तलिकाः निर्माय शुक्लवस्त्रेण वेष्टयेच्छुक्लदीप्ततेजसे हन हन मुञ्च मुश्च स्वाहा" चतर्थ दिवसे पुष्प,गन्धताम्बूलं, शुक्लत्रयोदश ध्वजाः,त्रयोदश दीपा: ब्राह्मणं भोजयेत्ततःसम्पद्यते शुभम् ॥ ९४॥ त्रयोदश स्वस्तिकाः,त्रयोदश पुत्तलिकाः, त्रयोदशमत्स्य पुत्तलिकाः, मत्स्यमांससुराः,उत्तरदिग्भागे ग्रामनिष्कासे सातवें दिन, महीने या वर्षमें शुष्करेवती नामक मातृका | बलिं दद्यात शान्त्यदकेन स्नानं.गुग्गलनिम्बपत्रगोश्रद्धग्रहण करती है। उसके ग्रहण करते ही पहिले घर होता है, श्वेतसर्षपघृतेधूपं दद्यात् । मन्त्रः “ॐ नमो नारायणाय शरीर कम्पाता है, मुट्टी बांधता है, रोता है । उसके लिये नालि कहते हैं। लाल फूल, सफेद फूल, गन्ध, ताम्बूल, लाल हन हन मुञ्च मुश्च स्वाहा" चतुर्थे दिवसे भात, खिचडी, १३ स्वस्तिक, मछली, मांस, शराब, तेरह ब्राह्मणं भोजयेत्ततः सम्पद्यते शुभम् ॥ ९६ ॥ पताका, और ५ दीपक सायंकाल ग्रामके निकासपर पश्चिम नवें दिन, महीने और वर्षमें भूसूतिकानाम मातृका ग्रहण दिशामें वृक्षके नीचे बलि देवे। तथा शांतिजलसे बालकको स्नान | करती है । उसके ग्रहण करते ही पहिले ज्वर आता है, नित्य करावे । और गुग्गुलु मेढाशिंगी, सरसों, खश, सुगन्धवाला व वमन होती है, शरीरमें पीड़ा होती है, मुट्ठी बांधता है। उसके घीकी धूप देनी चाहिये । “ॐ नमो नारायणाय दीप्ततेजसे सलिये बलि कहते हैं- जिससे सुख होता है। नदीके दोनों किनाहन हन मुश्च मुञ्च स्वाहा " । यह मन्त्र पढना चाहिये । चौथे| रोकी मिट्टी ले पुतला बना सफेद कपड़ेसे लपेटना चाहिये । तथा दिन ब्राह्मणभोजन कराना चाहिये। तब सुखी होता है ॥ ९४॥ | सफेद फूल, गन्ध, ताम्बूल, सफेद १३ झण्डियां, १३ दीपक, अर्यकाचिकित्सा । १३ स्वस्ति, १३ पुत्तलिका, १३ मछलीकी पुत्तलियां, मछ लियां मांस व शराषकी उत्तर दिशामें ग्रामके निकासपर बलि अप्रमे दिवसे मासे वर्षे वा यदि गृह्णाति अयेका देनी चाहिये । शान्तिजलसे स्नान कराना चाहिये । और गुग्गुलु नाम मातृका । तया गृह्णीतमात्रेण प्रथम भवति ज्वरः। नीमकी पत्ती, गायका सींग, सफेद सरसों और घीकी धूप देनी गध्रगन्धः पूतिगन्धश्च जायते,आहारं च न गृह्णाति,उद्वेज चाहिये ( “ॐ नमो नारायणाय चतुर्भुजाय हन हन मुश्च मुञ्च यतिगात्राणि । बलिं तस्य प्रवक्ष्यामि येन सम्पद्यते स्वाहा" यह मन्त्र पढना चाहिये । चौथे दिन ब्राह्मण भोजन शुभम् । रक्तपीतध्वजाः, चन्दनं, पुष्पं, शष्कुल्यः, करावे । तब सुख होता है ॥ ९६ ॥ पर्पटिका, मत्स्यमांससुराजम्बुडिकाः प्रत्यूषे बलियः निर्ऋताचिकित्सा। प्रान्तरे। मन्त्रः "ॐ नमो नारायणाय चतुर्दिङ्मोक्षणाय व्याधि हन हन मुञ्च मुञ्च ॐ ह्रीं फट् स्वाहा" चतुर्थ दशमे दिवसे मासे वर्षे वा गृह्णाति निर्ऋता नाम दिवसे ब्राह्मणं भोजयेत्ततः सम्पद्यते शुभम् ॥ ९५॥ मातृका। तया गृहीतमात्रेण प्रथमं भवति ज्वरः।गात्रमुढे आठवें दिन, महीने और वर्ष में जो ग्रहण करती है, उसे | जयति,चीत्कारं करोति,रोदिति, मूत्रं पुरषिं च भवति। अर्यका नाम मातृका कहते हैं । उसके ग्रहण करते ही पहिले बलिं तस्य प्रवक्ष्यामि येन सम्पद्यते शुभम् । पारावारज्वर आता है, गृध्रके समान दुर्गन्ध आती है, आहार नहीं मृत्तिकां गृहीत्वा पुत्तलिकां निर्माय गन्धवाम्बूलं, रक्त

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