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चक्रदत्तः।
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कलहंसकः।
पित्तच्छर्दिचिकित्सा। अष्टादश शिग्रुफलान्यथै दश मरिचानि
पित्तात्मिकायां त्वनुलोमनार्थ विंशतिश्च पिप्पल्याः। आर्द्रकपलं
द्राक्षाविदारीखुरसैनिवृत्स्यात् । गुडपलं प्रस्थत्रयमारनालस्य ॥१८॥ एतद्विडलवणयुतं खजाहतं सुरभि गन्धादयम् ।।
कफाशयस्थं त्वतिमात्रवृद्धं
पित्तं जयेत्स्वादुभिरूवमेव ॥ ४ ॥ व्यजनसहस्रघाति ज्ञेयं कलहंसकं नाम ॥ १९ ॥
अठारह सहिजनके बीज, १० काली मिर्च, २० छोटी। शुद्धस्य काले मधुशर्कराभ्यां पीपल, अदरख ४ तोला, गुड़ ४ तोला, काजी ३ प्रस्थ सब लाजैश्च मन्थं यदि वापि पेयाम् । एकमें मिला तथा लवणसे नमकीन हो इतना बिड़लवण मिला प्रदापयेन्मुद्गरसेन वापि मथनीसे मथकर रखना चाहिये । यह सुगन्धित, भोजनमें रुचि
शाल्योदनं जाङ्गलजै रसैर्वा ॥५॥ . करनेवाला तथा पाचक "कलहंस" नामक पना है ॥८॥१९॥
चन्दनेनाक्षमात्रेण संयोज्यामलकीरसम् । इत्यरोचकाधिकारः समाप्तः ।
पिबेन्माक्षिकसंयुक्तं छर्दिस्तेन निवर्तते ॥६॥
चन्दनं च मृणालं च बालकं नागरं वृषम् । अथ छाधिकारः।
सतण्डुलोदकक्षौद्रं पीतः कल्को वमिं जयेत् ॥७॥ कषायो भृष्टमुद्गस्य सलाजमधुशर्करः ।
छद्यतीसारतृड्दाहज्वरघ्नः संप्रकाशितः॥८॥ लंघनप्राशस्त्यम् ।
हरीतकीनां चूर्ण तु लिह्यान्माक्षिकसंयुतम् । आमाशयोत्लेशभवा हि सर्वा
अधोभागीकृते दोषे छर्दिः क्षिप्रं निवर्तते ॥ ९॥ श्छ? मता लंघनमेव तस्मात् ।
गुडूचीत्रिफलारिष्टपटोले: कथितं पिबेत् । प्राक्कारयेन्मारुतजां विमुच्य
क्षौद्रयुक्तं निहन्त्याशु छदि पित्ताम्लसम्भवाम् ॥ संशोधनं वा कफपित्तहारि ॥१॥
काथः पटज: पीतः सक्षौद्रश्छर्दिनाशनः ॥ १०॥ समस्त छर्दियां आमाशयमें दोष बढ़ जानेसे ही होती हैं,।
पित्तच्छामें मुनक्का, विदारीकन्द और ईखके रसके साथ अतः वातजको छोडकर सबमें प्रथम लंघन ही कराना चाहिये ।
ज स लेला जागि अथवा कफ, पित्तनाशक संशोधन अर्थात्, वमन विरेचन | AM
अथवा कफाशयस्थ अधिक बढ़े पितको मधुर द्रव्यों द्वारा वमन कराना चाहिये ॥१॥
| कराकर ही निकाल देना चाहिये । शुद्ध हो जानेपर भोजनके वातच्छर्दिचिकित्सा।
समय शहद व शक्करके साथ धानकी लाईकी पेया अथवा मन्थ
अथवा मूंगके यूषके साथ या जांगल प्राणियोंके मांस रसके हन्यात्क्षीरोदकं पीतं छार्दै पवनसम्भवाम् ।।
साथ शालि चावलोंका भात खिलाना चाहिये। चन्दनका चूर्ण ससैन्धवं पिबेत्सर्पिर्वातच्छर्दिनिवारणम् ॥२॥ १ तोला, आंबलाका रस ४ तोला, शहद १ तोला मिलाकर मुद्रामलकयूषं वा ससर्पिष्कं ससैन्धवम् । पीनसे वमन बन्द हो जाता है । इसी प्रकार सफेद चन्दनका यवागू मधुमिश्रां वा पञ्चमूलीकृतां पिबेत् ॥३॥ कल्क, कमलकी डण्डी, सुगन्धवाला, सोंठ, अडूसा इनका कल्क दूध व जल मिलाकर पीना अथवा सेंधानमकके साथ घी चावलोंके धोवन व शहदके साथ पीनेसे पित्तज वमन शान्त पीना अथवा मूंग व आंवलेका यूष, घी, सेंधानमक मिलाकर होता है । इसी प्रकार भुनी मूंगका काढ़ा खील, शहद व अथवा पञ्चमूलसे सिद्ध की हुई यवागू शहद मिलाकर पीनेसे शक्कर मिलाकर पीनसे वमन, अतीसार, तृषा, दाह व ज्वरको वातच्छर्दि नष्ट होती है ॥२॥३॥
शान्त करता है । अथवा हर्रका चूर्ण शहद मिलाकर चाटनेसे
| विरेचनसे दोष शुद्ध हो जाते हैं और वमन शान्त होती है। १ यहांपर 'क्षीरोदकम् ' के स्थानमें पाठान्तर ' क्षीरघृतम्' अथवा गुर्थ, त्रिफला, नीमके पत्ते, परबलके पतेका क्वाथ बना ऐसा सुश्रुत टीकाकार डहणने किया है। और उसका अर्थ"क्षीरा- शहद मिलाकर पीनेसे पित्तज छर्दि शीघ्र ही शान्त दुद्भुतं घृतम् " किया है। पर वाग्भटने "पीतं तुल्याम्बु वा पित्तपापड़ाका काथ शहदके साथ पानसे वमन शान्त होती पब कहा है, अतः वही यहां लिखा गया है।
है॥४-१.॥
-निल