Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press

View full book text
Previous | Next

Page 257
________________ ( २३० ) " 'चक्रदत्तः । कषायं पाययेदेतच्छ्लेष्म पित्तज्वरापहम् । कण्डूत्वग्दोषविस्फोटविषवीसपनाशनम् ॥ २३ ॥ परवलकी पत्ती, त्रिफला, नीमकी पत्ती, गुर्च, नागरमोथा, चन्दन, मूर्वा, कुटकी, पाढ, हल्दी व यवासाका क्वाथ बनाकर पिलानेसे कफपित्तज्वर, खुजली, त्वग्दोष, फफोले, विष और विसर्प नष्ट होते ॥ २२ ॥ २३ ॥ भूनिम्बादिकाथः । भूनिम्बवासाकटुकापटोलफलत्रिकाचन्दननिम्बसिद्धः । विसर्पदाहज्वरवशोष - चिरायता, अडूसा, कुटकी, परवल की पत्ती, त्रिफला, चन्दन और नीमका क्वाथ विसर्प, दाह, ज्वर, मुखका सूखना, फफाले, तृष्णा और वमनको नष्ट करता है ॥ २४ ॥ चन्दनादिलेपः । चन्दनं नागपुष्पं च तण्डुलीयकशारिवे । शिरीषवल्कलं जातीलेपः स्याद्दाहनाशनः ॥ २८ ॥ [ विसर्पविस्फोटा सिर्साकी छाल, गूलरकी छाल व जामुनकी छाल लेप और विस्फोटतृष्णावमिनुत्कषायः ॥ २४ ॥ सेकमें हितकर हैं । अथवा लखौढाकी छाल प्रलेप और आश्च्योतनमें हितकर है ॥ ३१ ॥ 'चन्दन, नागकेशर, चौराई, शारिवा, सिर्साकी छाल, व चमेलीका लेप दाइको नष्ट करता है ॥ २८ ॥ कवलग्रहाः । शिरीषमूलमञ्जिष्ठाचव्यामलकयष्टिकाः । शुकतर्वादिलेपः । शुकतरुनते च मांसी रजनी पद्मा च तुल्यानि । पिष्टानि शीततोयेन लेपः स्यात्सर्वविस्फोटे ॥ २९ ॥ सिर्साकी छाल, तगर, जटामांसी, हल्दी, भारङ्गी इनको समान ' ले ठण्ढे जलमें पीसकर लेप करनेसे यह समस्त फफोलोंको भाग नष्ट करता है ॥ २९॥ सजाती पल्लवीद्रा विस्फोटे कवलग्रहाः || ३० ॥ सिर्साकी छाल, मञ्जीठ, चव्य, आंवला, मौरेठी तथा चमेलीकी पत्तीका चूर्ण बनाकर शहद में मिला कवल धारण करनेसे मुखके फफोले नष्ट होते हैं ॥ ३० ॥ शिरीषादिलेपाः । शिरीषोदुम्बरी जम्बु सेकालेपनयोर्हिताः । श्लेष्मातकत्वचो वापि प्रलेपाश्च्योतने हिताः॥ ३१ ॥ अन्ये योगाः । ॥ सकफे पित्तयुक्ते तु त्रिफलां योजयेत्पुरैः ॥ २५ ॥ दुरालभां पर्पटकं पटलं कटुकां तथा । सोष्णं गुग्गुलुसंमिश्रं पिबेद्वा खदिराष्टकम् ॥ २६॥ कुण्डली पिचुमर्दाम्बु खदिरेन्द्रयवाम्बु वा । विस्फोटं नाशयत्याशु वायुर्जलधरानिव ॥ २७ पित्तकफजन्य विसर्पमें गुग्गुलु के साथ त्रिफलाका प्रयोग करना चाहिये । अथवा यवासा, पित्तपापड़ा, परवल की पत्ती व कुटकी के गरम गरम क्वाथको गुग्गुलु मिलाकर पीना चाहिये | अथवा खदिराष्टकका क्वाथ ( मसूरिकाधिकारोक्त ) पीना चाहिये । अथवा गुर्च व नीमकी छालका क्वाथ अथवा कत्था व इन्द्रयवका क्वाथ विसर्पको मेघोंको वायुके समान नष्ट करता है ॥ २५-२७ ॥ सिर्साकी छाल, मौरेठी, तगर, सफेद चन्दन, छोटी इलायची, जटामांसी, हल्दी, दारुहलदी, कूठ व सुगन्धवालाका | लेप घीके साथ विसर्प, कण्डू, ज्वर और शोथको नष्ट करता है । इसे " दशाङ्गलेप ” कहते हैं ॥ ३२ ॥ दशाङ्गलेपः । शिरीषयष्टनितचन्दनेलामांसीहरिद्राद्वयकुष्ठवालेः । लेपो दशाङ्गः सघृतः प्रदिष्टो विसर्पकण्डूज्वरशोथहारी ॥ ३२ ॥ शिरीषादिलेपः । शिरीषोशीर नागाह्वहिंसाभिर्लेपनाद् दुतम् । विसर्पविषविस्फोटा: प्रशाम्यन्ति न संशयः ॥ ३३॥ सिर्सेकी छाल, खरा, नागकेशर व जटमांसीका लेप विसर्प, विष और फफोलोंको नष्ट करता है ॥ ३३ ॥ विषाद्यं घृतम् । वृषखदिर पटोलपत्रनिम्बत्वमृतामलकी कषायकल्कैः । घृतमभिनवमेतदाशु पक्कं जयति विसर्पगदान्सकुष्ठगुल्मान् ॥ ३४ ॥ अडूसा, कत्था, परवलकी पत्ती, नीमकी, छाल, गुर्च व आंवलाके क्वाथ व कल्क में सिद्ध घृत विसर्प, कुष्ठ व गुल्मको नष्ट करता है ॥ ३४ ॥ पञ्चतिक्तं घृतम् । पटोलसप्तच्छदनिम्बवासाफलत्रिकं छिन्नरुहाविपकम् ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 255 256 257 258 259 260 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374