Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press

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Page 292
________________ विकारः] भाषाटीकोपेतः। कुमारिकावर्तिः। | की गई बत्ती मवाद, लेप और खुजलीको नष्ट करती तथा अशीतिस्तिलपुष्पाणि षष्टिः पिप्पलितण्डुलाः। कफनाशक है। तथा छोटी पीपल १ भाग, हरै २ भाग | दोनोंको जलमें पीसकर बनायी गयी बत्ती नेत्रोंको सुख देती जातीकुसुमपञ्चाशन्मरिचानि च षोडश ।। है। अर्म, तिमिर, पटल, काच आंसुओंको शान्त करती एषा कुमारिका वर्तिर्गतं चक्षुर्निवारयेत् ॥११३ ॥ है ॥ ११६-१२०॥ तिलके फूल ८०, छोटी पीपलके दाने ६०, चमेलीके फूल ५०, काली मिर्च १६ इनकी बनायी वर्ति "कुमारिका" कही चन्द्रप्रभावतिः। जाती है । यह गत चक्षुको भी पुनः शक्तिसम्पन्न करती अञ्जनं श्वेतमरिच पिप्पली मधुयष्टिका । विभीतकस्य मध्यं तु शङ्खनाभिर्मनःशिला १२१॥ त्रिफलादिवतिः। एतानि समभागानि अजाक्षीरेण पेषयेत् । त्रिफलाकुक्कुटाण्डत्वक्कासीसमयसो रजः। छायाशुष्कां कृतां वर्ति नेत्रेषु च प्रयोजयेत् ॥१२२ नीलोत्पलं विडंगानि फेनं च सरितां पतेः ॥११४॥ अर्बुदं पटलं काचं तिमरं रक्तराजिकाम् । आजेन पयसा पिष्ट्वा भावयेत्ताम्रभाजने । । आधिमासं मलं चैव यश्च रात्रौ न पश्यति ॥१२३॥ सप्तरात्रं स्थितं भूयः पिष्ट्वा क्षीरेण वर्तयेत्॥११५] वर्तिश्चन्द्रप्रभा नाम जातान्ध्यमपि शोधयेत्॥१२४॥ एषा दृष्टिप्रदा वर्तिरन्धस्याभिन्नचक्षुषः। काला सुरमा, सहिजनके बीज, छोटी पीपल, मौरेठी, बहेड़ेकी त्रिफला, मुर्गाके अण्डेका छिल्का, काशीस,लौहभस्म,नीलोफर, गुठली, शंखनाभी, मैनशिल इनका समान भाग ले बकरके धमें वायविडंग तथा समुद्रफेनको बकरीके दूधसे ७ दिनतक ताम्रके पीस गोलीको बनाकर छायामें सुखाकर आंखोंमें लगाना पात्र में भावना देकर फिर दूधसे ही पीसकर बनायी गयी वति चाहिये । यह अबुद, पटल, काच, तिमिर, लाल रेखाएँ. जिसे दिखायी नहीं पडता पर आँख बैठी नहीं है, उसे दृष्टिदान अधिमांस, मल, रतौंधी और जन्मान्ध्यको भी नर करती करती है॥ ११४॥ ११५॥ है ॥ १२१-१२४॥ अन्या वर्तयः। श्रीनागार्जुनीयवतिः। त्रिफलाव्योषसिन्धूत्थयष्टीतुत्थरसाजनम् ।। चन्दनत्रिफलापूगपलाशतरुशोणितैः ॥ ११६ ॥ जलपिष्टैरियं वर्तिरशेषतिमिरापहा । प्रपोण्डरीकं जन्तुम्नं लो| तानं चतुर्दश ॥ १२५ ॥ निशाद्वयाभयामांसीकुष्ठकृष्णा विचूर्णिता ॥११७॥ द्रव्याण्येतानि संचूर्ण्य वर्तिः कार्या नभोऽम्बुना । सर्वनेत्रामयान्हन्यादेतत्सौगतमजनम् । नागार्जुनेन लिखिता स्तम्भे पाटलिपुत्रके ॥१२६ ॥ व्योषोत्पलाभयाकुष्ठताक्ष्यैर्वतिः कृता हरेत्॥११८॥ नाशनी तिमिराणां च पटलानां तथैव च । अर्बुदं पटलं काचं तिभिरार्माश्रुनिस्रतिम् । सद्यः प्रकोपं स्तन्येन स्त्रिया विजयते ध्रुवम् ॥१२७ किंशुकस्वरसेनाथ पिल्लपुष्पकरक्तताः । त्र्यूषणं त्रिफलावत्क्रसैन्धवालमनः शिलाः।। क्लेदोपदेहकण्डूनी वर्तिः शस्ता कफापहा ॥११९ ॥ अञ्जनालोध्रतोयेन चासन्नतिमिरं जयेत् ॥ १२८ ॥ चिरसंच्छादिते नेत्रे बस्तमूत्रेण संयुता। एकगुणा मागधिका द्विगुणा च हरीतकी सलिलपिष्टा। उन्मीलयत्यकृच्छ्रेण प्रसाद चाधिगच्छति ॥१२९॥ वर्तिरियं नयनसुखा सोंठ, मिर्च, पीपल, आंवला, हर्र, बहेड़ा, सेंधानमक, मंतिमिरपटलकाचाश्रुहरी ।। १२०॥ मौरेठी, तूतिया, रसौंत, पुण्डारया, वागविडङ्ग, लोध्र. चन्दन, त्रिफला, सुपारी तथा ढाकके गोंदको जलमें पीसकर और ताम्र ये चौदह ओषधियां समान भाग ले चर्णकर बनायी वर्ति समस्त तिमिरोंको नष्ट करती है। इसी प्रकार आकाशसे वर्षे जलसे बत्ती बना लेनी चाहिये । यह बत्ती हल्दी, दारुहल्दी, बड़ी हर्रका छिल्का, जटामांसी, कूठ व छोटी नागार्जुनने पाटलिपुत्रमें खम्भेमें लिखी है । यह तिमिर पीपलके चूर्णको आंखमें लगानेसे समस्त नेत्ररोग नष्ट होते हैं। और पटलको नष्ट करती है, जल्दीके प्रकोप अभिष्यन्दको तथा त्रिकट, नीलोफर, हरी, कूठ, रसौंतकी बत्ती अर्बुद, पटल, स्त्रीके दूधसे जीतती है । ढाकके स्वरससे पिल्ल, फूली और काच, तिमिर, अर्म और अश्रुप्रवाहको नष्ट करती है । तथा | लालिमाको जीतती है । लोधके जलसे तिमिरको नष्ट त्रिकटु, त्रिफला, तगर, सेंधानमक, हरताल व मनशिलसे । करती है, अधिक समयसे बन्द नेत्रमें बकरेके मूत्रके साथ

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