Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press
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(२७०)
चक्रदत्तः।
[ नेत्ररोगा
Frerत्रिफला, त्रिकटु, मुनक्का, मौरेठी, कुटकी, पुण्डरिया, पिप्पल्यःसर्वेषां भागैरक्षांशिकैः पिष्टैः ॥ १९४ ।। छोटी इलायची, वायविडंग, नागकेशर, नीलोफर, शारिवा| तैलं यदि वा सर्पिर्दत्त्वा क्षीरं चतुर्गुणं पक्कम् । काली शारिवा, चन्दन, हल्दी, दारुहल्दी प्रत्येक एक एक
तिमिरं पटलं काचं नक्तान्ध्यं चाबुंदं तथान्ध्यं च । तोलेका कल्क घी १२८ तो०, दूध १२८ तोला तथा
श्वतं च लिङ्गनाशं नाशयति परं च नीलिकाव्यङ्गम् त्रिफलाका रस ४ सेर ६४ तोला मिलाकर पकाना चाहिये ।। यह समस्त नेत्ररोग तथा तिमिर, बहना, कामला, काच,
मुखनासादोर्गन्ध्यं पलितं चाकालर्ज हनुस्तम्भम् । तथा अर्बुद, विसर्प, प्रदर, खुजली, लालिमा, सूजन, बालोंका
कासं श्वासं शोषं हिक्कां स्तम्भं तथात्ययं नेत्रे १९६ गिरना, सफेदी, इन्द्रलुप्त, विषमज्वर, अर्म, फूली तथा और मुखरोगमर्धभेदं रोगं बाहुग्रहं शिरःस्तम्भम् । जो अनेक नेत्र या विनियों में रोग होते हैं, उन सबको इस रोगानथोर्ध्वजत्रोः सर्वानचिरेण नाशयति ॥१९७।। प्रकार नष्ट करता है जैसे सूर्य अन्धकारको ।काश्यपादि ऋषियोंने नस्यार्थ कुडवं तैलं पक्तव्यं नृपवल्लभम् । इससे बढ़कर कोई प्रयोग नेत्रोंके लिये लाभदायक नहीं। अक्षांशैः शाणिकः कल्कैरन्ये भृङ्गादितैलवत् १९८ समझा ॥ १८४-१८९ ॥
जीवक, ऋषभक, मेदा, महामेदा, मुनक्का, सरिवन, कटेरी, तिमिरघ्नत्रफलं घृतम् ।
बड़ी कटेरी, मौरेठी, खरेटी, वायविडंग मजीठ, शक्कर, राना, फलत्रिकाभीरुकषायसिद्धं
नोलोफर, गोखुरू, पुण्डरिया, पुनर्नवा, नमक तथा छोटी पीपल कल्केन यष्टीमधुकस्य युक्तम् ।
प्रत्येक ३मासेका कल्क तैल अथवा घी १६ तोला, दूध ६४ तो. सर्पिः समं क्षौद्रचतुर्थभागं
छोड़कर पकाना चाहिये । यह तिमिर, पटल, काच, नक्तान्ध्य, हन्यात्रिदोषं तिमिरं प्रवृद्धम् ॥ १९० ।।।
अर्बुद, अन्धता, लिङ्गनाश, सफेदी, झाई, व्यंग, मुखनासादुगंध
तथा अकालपलित, हनुस्तम्भ, कास, श्वास, शोष, हिक्कास्तम्भ त्रिफला, और शतावरीके क्वाथ तथा मोरेठीके कल्कसे सिद्ध
सिद्ध | तथा नेत्रात्यय, मुखरोग, अर्धभेद, बाहुकी जकड़ाहट, शिरः
बाय मखगग अर्धभेट. बाहकी जकडाहट. घृतमें चतुर्थाश शहद मिलाकर सेवन करनेसे त्रिदोषज तिमिर
तामर स्तम्भ तथा ऊर्ध्वजत्रुके समस्त रोग शीघ्रही नष्ट करता है । शान्त होता है ॥ १९० ॥
इसका नस्य लेना चाहिये । इसमें प्रत्येक का कल्क ३ माशे और भृङ्गराजतैलम् ।
तैल १६ तोला छोड़ना चाहिये । कुछलोग कहते हैं कि मुंगराज
तैलके समान बनाना चाहिये ॥ १९३-१९८ ॥ भृङ्गराजरसप्रस्थे यष्टीमधुपलेन च । तैलस्य कुडवं पक्कं सद्यो दृष्टिं प्रसादयेत् ।
अभिजित्तैलम् । नस्याद्वलीपलितनं मासेनैतन्न संशयः ॥ १९१॥ तैलस्य पचेत्कुडवं मधुकस्य पलेन कल्कपिष्टेन ।
भाँगरेका रस ६४ तो०, मौरेठीका कल्क ४ तोला, तैल १६| आमलकरसप्रस्थं क्षीरप्रस्थेन संयुतं कृत्वा ॥१९९॥ तो० पकाकर नस्य लेनेसे झुर्रियाँ और बालोंकी सफेदी नष्ट आभिजिन्नाम्ना तैलं तिमिर हन्यान्मुनिप्रोक्तम् । करता तथा नेत्र उत्तम बनाता है ॥ १९१ ॥
विमलां कुरुते दृष्टिं नष्टामप्यानयेदिदं शीघ्रम् २००
तैल १६ तोला, मारेठी ४ तो०, आंवलेका रस ६४ तो. गोशकृत्तलम् ।
व दूध ६४ तो० मिलाकर पकाना चाहिये । इसका नस्य गवां शकृत्वाथविपक्कमुत्तम
| तिमिरको नष्ट करता तथा दृष्टिको स्वच्छ करता है । इसे “ अभिहितं च तैलं तिमिरेषु नस्ततः ।
जित्तल' कहते हैं ॥ १९९ ॥ २० ॥ घृतं हितं केवलमेव पैत्तिके तथाणुतैलं पवनामृगुत्थयोः ।। १९२ ॥
अर्मचिकित्सा। गायके गोबरके क्वाथसे पकाया तैल नस्य लेनेसे तिमिरको
अर्म तु छेदनीयं स्यात्कृष्णप्राप्तं भवेद्यदा । शान्त करता है। पैत्तिकमें केवल घृत तथा वातरक्तजमें अणुतैल
बाडशावद्धमुन्नम्य त्रिभागं चात्र वर्जयेत् ॥२०१॥ हितकर है ॥ १९२ ॥
पिप्पलीत्रिफलालाक्षालोहचूर्ण ससैन्धवम् ।
भृङ्गराजरसे पिष्टं गुडिकाअनभिष्यते ॥२०२ ॥ नृपवल्लभतैलम् ।
अर्म सतिमिरं काचं कण्डूं शुक्रं तदर्जुनम् । जीवकर्षभको मेदे द्राक्षांशुमती निदिग्धिका बृहती ।। अजकां नेत्ररोगांश्च हन्यान्निरवशेषतः ॥ २०३ ॥ मधुकं बला विडङ्गं मञ्जिष्ठा शर्करा रास्ना ।।१९३॥| अर्म जब काले भागमें पहुंच जाय, तब बशिसे पकड़ उन्न. नीलोत्पलं श्वदंष्ट्रा प्रपौण्डरीकं पुनर्नवा लवणम् । |मित कर ३ भाग छोड़कर काटना चाहिये । तथा छोटी पीपल

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