Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press

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Page 296
________________ धिकारः] भाषाटीकोपेतः। - (२६९) न - छोटी पीपल बकरी की लेंडिओंके साथ पका और उसीके यावन्तो नेत्ररोगास्तान्पानादेवापकर्षति । रसमें पीसकर आंखमें लगानेसे अथवा काली मिर्च शहदमें सरक्ते रक्तदुष्टे च रक्त चाति तेऽपि च ॥१०॥ मिलाकर लगानेसे रतौंधी शीघ्रही मिटती है ॥ १७॥ नक्तान्ध्ये तिमिरे काचे नीलिकापटलार्बुदे । गौधयकृद्योगः। अभिष्यन्देऽधिमन्थे च पक्ष्मकोपे सुदारुणे ।। १८१ पचेत्तु गौधं हि यकृत्प्रकल्पितं नेत्ररोगेषु सर्वेषु वातपित्तकफेषु च । प्रपूरितं मागधिकाभिरग्निना । अदृष्टिं मन्ददृष्टिं च कफवातप्रदूषिताम् ॥ १८२॥ निषेवितं तत्सकृदचनेन च स्रवतो वातापित्ताभ्यां सकण्ड्वासन्नदूरदृक् । निहन्ति नक्तान्ध्यमसंशयं खलु ॥ १७१ ॥ गृध्राष्टिकरं सद्यो बलवर्णाग्निवर्धनम् । गोहका यकृत और छोटी पीपल पका गोली बनाकर एक सर्वनेत्रामयं हन्यात्रिफलाद्यं महद् घृतम् ।। १८३॥ बार ही लगानेसे निःसन्देह रतौंधी नष्ट होती है ॥ १७१॥ त्रिफलाका रस एक प्रस्थ, भांगरेका रस १ प्रस्थ, अडूसेका नक्तान्ध्यहरा विविधा योगाः। | रस १ प्रस्थ, शतावरीका रस १ प्रस्थ तथा बकरीका दूध, गुर्चका दना निघृष्टं मरिचं रात्र्यान्ध्याञ्जनमुत्तमम् ।। रस, आंवलेका रस प्रत्येक एक प्रस्थ तथा घी १ प्रस्थ, और ताम्बूलयुक्तं खद्योतभक्षणं च तदर्थकृत् ॥ १७२ ॥ छोटी पीपल, मिश्री, मुनक्का, त्रिफला, नीलोफर, मौरेठी, क्षीरकाकोली, दूध व छोटी कटेरीका कल्क छोड़कर पकाना शफरीमत्स्यक्षारो नक्तान्ध्यं चाञ्जनाद्विनिहन्ति । | चाहिये । ठीक सिद्ध हो जानेपर अच्छे बर्तन में रखना चाहिये। तद्दामठटणकर्णमलं चैकशोऽजनान्मधुना १७३|इसे सबेरे दोपहर व शामको पीना चाहिये । जितने नेत्रकेशराजान्वितं सिद्धं मत्स्याण्डं हन्ति भक्षितम् । रोग होते हैं, उन्हें पानसे ही नष्ट करता है । लाल नक्कान्ध्यं नियतं नृणां सप्ताहात्पथ्यसेविनाम् १७४ | नेत्रोंमें, रक्तदूषित अथवा अधिक बहते हुए नेत्रोंमें, दहीमें घिसी काली मिर्चका रतौंधीमें अञ्जन लगाना| रतौन्धी, तिमिर, काच, नीलिकापटल, अर्बुद, अभिष्यन्द, चाहिये । तथा पानके साथ जुगुनूका खाना भी यही गुण | अधिमन्थ, दारुण पक्ष्मकोप वातपित्तकफजन्य समस्त रोगोंमें करता है । इसी प्रकार छोटी भछलीका क्षार अञ्जन लगानसे | हितकर है। न दिखलाई पड़ना, मन्द दृष्टि कफवातसे दूषित रतौन्धीको नष्ट करता है । अथबा हींग, सुहागा, कानका मैल | हाट का दृष्टि तथा वातपित्तसे बहती हुई दृष्टि, खुजली और समीप व इनमेंसे कोई एक शहदमें मिलाकर लगाना चाहिये। तथा काले दूरका दृष्टिको शुद्ध करता, बल, वर्णको बढ़ाता तथा समस्त भांगरेके साथ सिद्ध मछलीका अण्डा खाने और सात दिनतक नेत्ररोगोंको नष्ट करता है । इसे "महात्रिफलादिघृत" कहते पथ्यसे रहनेसे निःसन्देह रतौंधी नष्ट हो जाती है॥१७२-१७४॥ ह ॥ १७६-१८३॥ त्रिफलाघृतम् । काश्यपत्रफलं घृतम्। त्रिफलाकाथकल्काभ्यां सपयस्कं शृतं घृतम् । त्रिफला त्र्यूषणं द्राक्षा मधुकं कटुरोहिणी । तिमिराण्यचिराद्धन्ति पीतमेतन्निशामुखे ॥ १७५॥ प्रपौण्डरीकं सूक्ष्मैला विडङ्गं नागकेशरम् ॥१८४॥ त्रिफलाके क्वाथ व कल्क तथा दूध मिलाकर सिद्ध घृत नीलोत्पलं शारिवेद्वे चन्दनं रजनीद्वयम् । सायंकाल पीनेसे शीघ्रही तिमिर नष्ट होता है॥ १७५॥ कार्षिकैः पयसा तुल्यं त्रिगुणं त्रिफलारसम् ॥१८५ महात्रिफलाघृतम् । घृतप्रस्थं पचेदेतत्सवेनेत्ररुजापहम् । त्रिफलाया रसप्रस्थं प्रस्थं भृङ्गरसस्य च । तिमिरं दोषमानावं कामलां काचमबुंदम् ॥१८६॥ वृषस्य च रसप्रस्थं शतावर्याश्च तत्समम् ॥ १७६॥ वीसर्प प्रदरं कण्डूं रक्तं श्वयथुमेव च । अजाक्षीरं गुडूच्याश्च आमलक्या रसं तथा । खालित्यं पलितं चैव केशानां पतनं तथा ।।१८७ ॥ प्रस्थं प्रस्थं समाहृत्य सवैरेभिघृतं पचेत् ॥१७७ ॥ विषमज्वरमाणि शुक्रं चाशु व्यपोहति । कल्कः कणा सिता द्राक्षा त्रिफला नीलमुत्पलम् ।। अन्ये च बहवो रोगा नेत्रजा ये च वर्मजाः । मधुकं क्षीरकाकोली मधुपर्णी निदिग्धिका ॥१७८॥ तान्सर्वान्नाशयत्याशु भास्करस्तिमिरं यथा ॥ १८८ तत्साधुसिद्धं विज्ञाय शुभे भाण्डे निधापयेत् । न चैवास्मात्परं किञ्चिदृषिभिः काश्यपादिभिः। ऊर्ध्वपानपधःपान मध्यपानं च शस्यते ॥ १७९ ॥ दृष्टिप्रसादनं दृष्टं यथा स्यात्रैफलं घृतम् ॥१८९॥

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