Book Title: Chakradutt
Author(s): Jagannathsharma Bajpayee Pandit
Publisher: Lakshmi Vyenkateshwar Steam Press

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Page 307
________________ (२८०) चक्रदत्तः। [योनिव्यापद सन्निपातज प्रदर, कठिन मूत्रकृच्छ्र आदि रोगोंमें प्रयोग करना . योनिविशोधिनी वतिः। चाहिये । यह घृत इन रोगोंको सूर्य अन्धकारके समान नष्ट पिप्पल्या मरिचैर्माषैः शताह्वाकुष्ठसैन्धवैः। करता है ॥२६-३१॥ वर्तिस्तुल्या प्रदेशिन्या धार्या योनिविशोधनी।। ७॥ इत्यसृग्दराधिकारः समाप्तः। छोटी पीपल, मिर्च, उड़द, सौफ, कूठ, व सेंधानमकके चूर्णको साथ घोटकर बनायी गयी प्रदेशिनी अंगुलीके अथ योनिव्यापदधिकारः। समान बत्ती योनिमें धारण करनेसे योनि शुद्ध करती सामान्यचिकित्सा। दोषानुसारवर्तयः। योनिव्यापत्सु भूयिष्ठं शस्यते कर्म वातजित् । । हिंसाकल्कं तु वातार्ता कोष्णमभ्यज्य धारयेत् । बस्त्यभ्यङपरीषेकप्रलेपाः पिचुधारणम् ॥ १॥ . पञ्चवल्कस्य पित्तार्ता श्यामादीनां कफोत्तरा ॥८॥ योनिव्यापतमें अधिकतर बातनाशक चिकित्सा करंनी वातार्ता योनिमें मालिश कर जटामांसीके कल्ककी बत्ती चाहिये । तथा बस्ति, मालिश, सिञ्चन, लेप और फोहोंका बनाकर रक्खें । पित्तार्ता योनिमें पञ्चवल्कलके कल्ककी वत्ती धारण कराना चाहिये ॥१॥ और कफांर्ता योनिमें निसोथ आदिके कल्ककी बत्ती बनाकर रक्खें ॥ ८॥ वचादियोगः। योन्यश्चिकित्सा। : वचोपकुञ्चिकाजातीकृष्णावृषकसैन्धवम् । अजमोदां यवक्षारं चित्रकं शर्करान्वितम् ॥२॥ मूषिकामांससंयुक्तं तैलमातपभावितम् । अभ्यंगाद्धन्ति योन्यर्शः स्वेदस्तन्मांससैन्धवैः ॥९॥ पिष्ट्वा प्रसन्नयालोड्य खादेत्तद् घृतभर्जितम् ।। मूषिकाके मांससे युक्त तैल धूपमें तपाकर लगानेसे योन्यर्श थोनिपार्धातिहृद्रोगगुल्माॉविनिवृत्तये ॥३॥ तय ।। २ ।। नष्ट होता है। अथवा मूषिकाके मांस और सेंधानमकसे स्वेद होता दूधिया बच, कलौंजी, चमेली, छोटी पीपल, अडूसा, लेना भी योन्यर्श नष्ट करता है ॥९॥ सेंधानमक, अजमोद, जवाखार तथा चीतकी जड़के चूर्णको घीमें भून शक्कर मिला शरावके स्वच्छ भागमें मिलाकर खाना अचरणादिचिकित्सा। चाहिये । यह योनिरोग पार्श्वशूल, हृद्रोग गुल्म और अर्शको दूर गोपित्ते मत्स्यपित्ते वा क्षीमं त्रिःसप्तभावितम् । करता है ॥२॥३॥ मधुना किण्वचूर्ण वा दद्यादचरणापहम् ॥ १० ॥ परिषेचनाद्युपायाः। स्रोतसां शोधनं शोथकण्डूक्लेदहरं च तत् । कामिन्याःपूतियोन्याश्च कर्तव्यः स्वेदनो विधिः११।। गुडूचीत्रिफलादतीकाथैश्च परिषेचनम् ।। क्रमः कार्यस्ततः स्नेहपिचुभिस्तर्पणं भवेत् ।। नतवार्ताकिनीकुष्ठसैन्धवामरदारुभिः ॥ ४॥ शल्लकीजिङ्गिनीजम्बुधवत्वपञ्चवल्कलैः ॥१२॥ तेलाप्रसाधिताद्धार्यः पिचुर्योनौ रुजापहः। कषायैः साधितः स्नेहः पिचुः स्याद्विप्लुतापहः । पित्तलानां तु योनीनां सेकाभ्यङ्गपिचुक्रियाः ॥५॥ कहिन्यां वर्तिका कुष्ठपिप्पल्याग्रसैन्धवैः ॥ १३॥ शीताः पित्तहराः कार्याः रोहनार्थ घृतानि च । । बस्तमूत्रकृता धार्या सर्व च श्लेष्मनुद्धितम् । योन्यां बलासदुष्टायां सर्व रूक्षोष्णमौषधम् ॥ ६॥ त्रैवृत्तं स्नेहन स्वेद उदावानिलार्तिषु । गुर्च, त्रिफला और दन्तीके काथसे योनिमें सिञ्चन तदेव च महायोन्यां सस्तायां तु विधीयते ॥१४॥ कराना चाहिये तथा तगर, बैंगन, कूठ, सेंधानमक व गोपित अथवा मछलीके पितमें अलसीके वस्त्रकी देवदारुसे सिद्ध तैलका फोहा योनिमें धारण कराना | २१. भावना देकर अथवा शराबके किट्टको शहदके चाहिये । इससे पीड़ा शान्त होती है । पित्तल योनियों के साथ योनिमें रखनेसे अचरणा नष्ट होती है । तथा छिद्रोंका लिये सेक, मालिश और फोहा शीतल पित्तनाशक रखना शोधन और सूजन, खुजली व गीलापन आदिका नाश भी उप. चाहिये। स्नेहनके लिये घी लगाना तथा खाना चाहिये ।रोक्त प्रयोग करते हैं। पूतियोनिवाली स्त्रीके लिये स्वेदन करना कफदूषित योनिमें समस्त रूखे और गरम प्रयोग करने चाहिये । फिर स्नेहयुक्त फोहेका धारण करना चाहिये । शल्लकी चाहिथें ॥४-६॥ ( शालभेद), मजिष्टा, जामुनकी छाल, धायकी छाल व

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