________________
धिकारः ]
भाषाटीकोपेतः।
जन्मन्नन्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न्न एष एव विधिः कार्यः प्रणादे नस्यपूर्वकः। | निशागन्धपले पक्वं कटुतैलं पलाष्टकम् । गुडनागरतोयेन नस्यं स्यादुभयोरपि ॥ २९॥ | धूस्तूरपत्रजरसे कर्णनाडीजिदुत्तमम् ॥ ३७॥.
बेलके फलको गोमूत्रके साथ पीस बकरीके दूधमें मिला तैल घोघेके मांससे कड्डए तेलको पकाकर कानमें छोड़नेसे कानका सिद्ध कर कानमें छोड़नसे बाधिर्य नष्ट होता है । यही विधि नासूर शान्त होता है। इसी भांति हल्दी व गन्धक प्रत्येक नस्यपूर्वक कर्णनादमें करनी चाहिये। तथा दोनों में गुड व सोंठके | ४ तो०, कडुआ तैल ३२ तो० धतूरेके पत्तेके रसमें सिद्ध कर जलसे नस्य लेना चाहिये ॥ २८॥ २९ ॥
| कानमें छोड़नेसे कानके नासूरको नष्ट करता है ॥ ३६ ॥ ३० ॥ कर्णस्रावचिकित्सा।
कर्णप्रतिनाहचिकित्सा। चूर्ण पञ्चकषायाणां कपित्थरससंयुतम् ।
अथ कर्णप्रतीनाहे स्नेहस्वेदी प्रयोजयेत् । कर्णस्रावे प्रशंसन्ति पूरणं मधुना सह ।। ३०॥ | ततो विरिक्तशिरसः क्रियां प्राप्तां समाचरेत् ॥३८॥ मालतीदलरसमधुना पूरितमथवा गवां मूत्रैः। | कर्णप्रतीनाहमें, स्नेहन, स्वेदन तथा शिरोविरेचन कर उचित दूरेण परित्यज्यते च श्रवणयुगं पूतिरोगेण ॥३१॥ चिकित्सा करनी चाहिये ॥ ३८ ॥ हरितालं सगोमूत्रं पूरणं पूतिकर्णजित् ।। सर्जत्वक्चूर्णसंयुक्तः कार्पासीफलजो रसः ।
विविधा योगाः। मधुना संयुतः साधु कर्णस्रावे प्रशस्यते ॥ ३१॥
कर्णपाकस्य भैषज्यं कुर्यात्क्षतविसर्पवत् ।।
नाडीस्वेदोऽथ वमनं धूममूर्ध्वविरेचनम् ॥ ३९ ॥ पञ्चकषाय (वच, अडूसा, प्रियंगु, पटोल, निम्ब ) के चूर्णको
विधिश्च कफहा सर्वः कर्णकण्डूं व्यपोहति । कैथेके रस व शहद में मिलाकर कानमें छोड़ना हितकर है। तथा
क्लेदयित्वा तु तैलेन स्वेदेन प्रतिलाप्य च ॥ ४० ॥ चमेलीकी पत्तीके रसको शहदके साथ अथवा गोमूत्रके साथ
शोधयेत्कर्णगूथं तु भिषक् सम्यक् शलाकया। कानमें पूरण करनेसे दुर्गन्धित कर्णता नष्ट होती है। इसी प्रकार हरिताल व गोमूत्रके अथवा रालकी छालके चूर्णको कपासके
निर्गुण्डीस्वरसस्तैलं सिन्धुधूमरजो गुडः ॥४१॥ रसमें व शहदमें मिला कानमें डाले तो कर्णस्राव शान्त
पूरणात्पूतिकर्णस्य शमनो मधुसंयुतः। होता है ॥३०-३२॥
जातीपत्ररसे तैलं विपक्वं पूतिकर्णजित् ।। ४२॥ जम्ब्वादिरसः।
कर्णपाककी चिकित्सा क्षतविसर्पके समान करनी चाहिये । जम्बाम्रपत्रं तरुणं समांशं
कफजन्य खुजलीको नाड़ीस्वेद, वमन, धूम, शिरोविरेचन और
कफनाशकविधि नष्ट करती है । कर्णगूथ में तेल छोड़ स्वेदन ढीला ___ कपित्थकार्पासफलं च साम् ।
कर सलाईसे उसे निकाल देना चाहिये । सम्भालूका स्वरस, तैल, क्षुत्त्वा रसं तन्मधुना विमिश्र
सेंधानमक, गृहधूम, गुड़ व शहदको मिलाकर कानमें छोड़नेसे ____ स्रावापहं संप्रवदन्ति तज्ज्ञाः ॥३३॥
कान की दुधि नष्ट होती है। तथा चमेलीकी पत्तीके रसमें पकाया एतैः शृतं निम्बकरञ्जतैलं
तैल कानकी दुर्गन्धिको नष्ट करता है ॥ ३९-४२॥ ससार्षपं स्रावहरं प्रदिष्टम् ॥ ३४॥ पुटपाकविधिस्विन्नहस्तिविड्जातगोण्डकः ।
वरुणादितैलम् । रसः सतैलसिन्धूत्थः कर्णस्रावहरः परः॥३५॥
वरुणार्ककपित्थाम्रजम्बूपल्लवसाधितम् ।
पूतिकापहं तैलं जातीपत्ररसेन वा ॥ ४३ ॥ मुलायम जामुन व आमकी पत्ती तथा कैथा व कपासका फल प्रत्येक समान भाग ले रस निकाल शहद मिलाकर कानमें
| वरुण, आक, कैथा आम व जामुनकी पत्तीके रस अथवा छोड़नेसे कर्णस्राव नष्ट होता है । अथवा इन्हींसे सिद्ध नीम व|
केवल चमेलीकी पत्तीके रससे सिद्ध तैल कानकी दुर्गन्धको कजीका तैल सरसोंके तैलके साथ स्रावको नष्ट करता है । तथा|"
नष्ट करता है। पुटपाक विधिसे स्विन हाथीकी वीटके गोलेका रस तैल व सेंधा
कर्णक्रिमिचिकित्सा। नमकके साथ कर्णस्रावको नष्ट करता है ॥३३-३५॥ .
सूर्यावर्तकस्वरसं सिन्धुवाररसस्तथा । कर्णनाडीचिकित्सा।
लागलीमूलजरसं ज्यूषणेनावचूर्णितम् ।। ४४ । शम्बूकस्य तु मांसेन कटुतैलं विपाचयेत् । । पूरयेत्क्रिमिकर्ण तु जन्तूनां नाशनं परम् । .. तस्य पूरणमात्रेण कर्णनाडी प्रशाम्यति ॥ ३६॥ | क्रिमिकर्णकनाशार्थ क्रिमिन्नं योजयेद्विधिम् ॥४५॥