Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 12
________________ .भारतकी आज क्या दशा होगई है ? भारतवासियोंके तेज-पूर्ण चहगें पर भाऊ कैसी मुनी छाई है ? जिन लिलाटोंपर ब्रह्मचर्यके तेजकी ज्योति नगमगाती थी उनपर आज कैसी जर्दी छाई है ? तीर्थकरो और अवता. रोंका लीलास्थल भारतकी आज यह कैसी दशा है ? इस पुस्तके लेखक महाराज बालब्रह्मचारी । ब्रह्मचर्य के प्रभावसे आपने असाधारण प्रतिष्ठा लाभ की है। भारतीय ही नहीं इंग्लैंड, अमेरिका, जर्मनी, इटली, फ्रांस आदि पाश्चात्य देशों के विद्वान् भी आपके ब्रह्मचर्यपक्षस प्रस्फुटित ज्ञान-पुष्पकी सौरभस मत्त होकर आपकी प्रशंसा करते हैं; आपके सामने भक्तिभावसे अपना सिर झुराते हैं। चार महीनेसे आप रुग्णसय्या पर सो रहे हैं तो भी ब्रह्मचर्य के तेजसे आपका लिलाट आज भी दमक दमक करता है। ऐस ब्रह्मचारी महात्माके उपदेशसे; महात्माकी लिखी हुई पुस्तकके पाठसे प्रत्येक व्यक्ति ब्रह्मचर्य पाले विना नहीं रहगी। जो सर्वथा पालनेको संत्पर नहीं होगा, वह भी कमसे कम अमुक नियमोंके साथ तो अवश्यमेव इस व्रतको पालेगा । यही सोचकर मैंने इस पुस्तकका संदेश हिन्दीभाषियों तक पहुँचानेके लिए, हिन्दी अनुवाद किया है। ___मैं यशोविजय जैन-ग्रंथमालाके संचालकोंको धन्यवाद दिये विना नहीं रह सकती, जिन्होंने प्रसन्नतापूर्वक इस पुस्तकका अनुवाद प्रकाशित करना स्वीकार कर लिया । मुझे यह कहते संकोच होता है कि, मैंने हिन्दीभाषीके घर जन्म ऐकर भी गुजरातीमें अभ्यास किया था; इसलिए; और अनुवाद करनेका अभ्यास नहीं इसलिए भी; अनुवादमें बहुतसी त्रुटियाँ रह गई होंगी । पाठक पाठिकाएँ उसके लिए मुझे क्षमा करें । अनुवादिका। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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