Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 107
________________ वापिस आया; तब उसने पतिको अच्छी तरह स्नानादि करवा कर उत्तमोत्तम भोजन करवाया । पान सुपारी दिये, पश्चात् आगम देनेके लिए उसने अपने पतिको कहा कि:-" आप मेरी गोदमें सिर रखकर सो जाइए।"पतिने उसके कथनानुसार आराम किया। उसे निद्रा आगई। उस समय घरमें स्त्री-पुरुष और उनके २॥ साल उम्र के बच्चेके सिवा अन्य कोई नहीं था। बच्चा आँगनमें खेलता खेलता एक अग्निकुंडके पास पहुँचा । वह कुँड किसी हेतुसे मकानके आँगनमें बनाया गया था। स्त्रीने बच्चेको अग्निकुंडसे दूर हटनेके लिए बहुत कुछ हाथका इमारा किया-बहुत चेष्टा की, परन्तु वह लड़का वहाँसे नहीं हटा, और अचानक धगधगते अग्निकुंडमें जा गिरा । यद्यपि स्त्री यह बात समझ गई थी कि, इतना नजदीक गया हुआ लड़का जरूर अग्निकुंडमें गिरेगा तथापि वह यह सोचकर मन मारे बैठी रही कि, यदि उलूंगी या बोलूंगी तो पतिकी निद्राका भंग होगा और उनके आराममें विघ्न पड़ेगा। ____ लगभग आध घंटे बाद वह पुरुष जागा, और टाल तथा पानी मँगवा कर मुँह धो पोंछ, स्वस्थ हुआ, उसके बाद उसने स्त्रीको पूछा कि --- 'लड़का कहाँ गया ?' स्त्री थोड़ी देर चुप रही पीछे धीरेसे बोली:-"नाथ ! लड़का उस अग्निकुँडमें गिर गया ।" पुरुषने कहा-." क्या तुम जानती थी ? " स्त्रीने कहा-"हाँ" पतिने कहा--" क्यों नहीं बचाया ? " स्त्रीने कहा-"बचाती किस तरह ? यदि मैं उठती या आवाज करती Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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