Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 105
________________ ९१ ब्रह्मचर्य अर्थात् शीलकी महिमा बताते हुए शास्त्रकारोंन कहा है कि:-- "शीलं प्राणभृतां कुलोदयकरं शीलं वर्भूपणं शीलं शौचकरं विपद्भयहरं दौर्गत्यदुःखापहम् । शीलं दुर्भगतादिकन्ददहनं चिन्तापाणः प्रार्थिते व्याघ्र-व्याल-जलानलादि-शमनं स्वर्गापवर्गप्रदम् ।।१।। अर्थात्-मनुष्योंके कुलका उदय करनेवाला शील है। शरीरका भूषण शील है, पवित्र करनेवाला और आपतिको हरनेवाला शील है, दुर्गतिके दुःखका नाश करनेवाला भी शील है, और दौर्माग्यादि रूपी कंदको जड़ मूलसे जलानेवाला भी शील ही है । शील इच्छा पूर्ण करने में चिंतामणिरत्नके सदृश है इतना ही नही परन्तु व्याघ्र, सर्प, पानी और अग्निआदिक उपद्रोंको शान्त करनेवाला भी शील है, और स्वर्ग तथा मुक्तिका देनेवाला भी शील ही है। ____ ध्यानपूर्वक खोन करनेसे मालुम होता है कि, एक ब्रह्मचर्यधर्म ही तमाम धर्मों की प्राप्तिका कारण है । नारदके नामसे कौन अज्ञात है ? क्लेशप्रिय, लोगोंको लड़ा मारनेवाला, द्रौपदी जैसी महासतीका हरण करानेवाला, उनके ब्रह्मर्यके लिए लोगोंको शंका हो, ऐसे वचनोंका प्रयोग करनेवाला, और हजारों मनुष्योंके संहारका कारणमृत नारद महापुरुषोंकी पंक्किमें रक्खा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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