Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 106
________________ गया और ' मुक्तिगामी ' कहलाया, यह मात्र उसके शुद्ध ब्रह्मचर्यहीका प्रताप है और कुछ नहीं। ऐसे ब्रह्मचर्यकी क्या तारीफ की जाय ? तत्त्वज्ञ कहते हैं कि: "तुर्य ब्रह्मव्रतं नाम परमब्रह्मकारणम् । शौचानां परमं शौचं तपसां च परं तपः" ॥ १॥ अर्थात्-चौथा व्रत ब्रह्मचर्य है, वह मोक्षका कारण है। शौचोंमें उत्तम शौच है और तपोंमें सर्वोत्कृष्ट तप है। जैनसिद्धांत भी कहते हैं कि:-- तवेसु वा उत्तम बंभचेरं ।। चाहे साधु हो या तपस्वी, यदि उसमें ब्रह्मचर्य नहीं है तो समझो कि, उस साधु साधुत्व नहीं है और तपस्वीमें तपस्विता नहीं है । उसके पठन पाठन और क्रियाकांड सब भाररूप हैं। इसलिए कमसे कम ब्रह्मचर्य धर्मकी तो प्रत्येक मनुष्यको रक्षा करनी ही चाहिए । इस ब्रह्मचर्यके लिए ऊपर कहा जा चुका है कि, इसका प्रताप मनुष्यको पानी, अग्नि आदि कष्टोंसे भी बचा लेता है । यह बात, हम एकस्त्रीका उदादरण देंगे इससे पाठकोंको भलीमाँति ज्ञात हो जायगी । "एक मनुष्य अपनी स्त्रीको घरपर छोड़कर परदेश गया । स्त्री शीलवतपालने में बहुत दृढ थी । उसने स्वप्न में भी परपुरुषकी इच्छा नहीं की थी। दो साल के बाद जब उसका पति परदेशसे Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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