Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 88
________________ अर्थात् २॥) रू. में एक मनुष्यको अपना निर्वाह करना पड़ता है। ऐसी हालतमें यह कैसे हो सकता है कि, भरतखंडके लोग नीतिसे चलें, वैरभावका त्याग करें, और प्रत्येक मनुष्य मिलजुलकर रहें । पंद्रह गायोंके वाड़ेमें यदि एक ही गायके लिए घास डाला जाय तो वे भिचारी गरीब गायें भी पेट भरनेकेलिए लड़े विना कैसे रह सकती हैं ? यदि २५ कुत्ते ईकट्टे किये जायें और उन्हें एक दो रोटी के टुकड़े ही डाले जायँ तो वे कुत्ते क्या एक दूसरेसे लड़े विना रहेंगे ? कभी नहीं । कुदरतको यह बात पसंद नहीं है कि, दुनियामें मर्यादाका भंग हो। क्या यह आश्चर्य और खेदकी बात नहीं है कि, एक मनुष्य, जिसके घर कुटुंबके पोषण योग्य आय नहीं है और जो रात दिन अकथनीय चिंताएँ और कष्ट उठाते रहता है-एकके पीछे एक बच्चा पैदा किये जाता है । इसका परिणाम क्या हो रहा है ! सबका आधे पेट रहना । पाँच या सात रुपये पैदा करनेवाला एक आदमी अपना, अपनी स्त्रीका और यदि हो तो, एकदो बच्चोंका भी पूरी तरहसे पेट नहीं भर सकता है, वही यदि वर्ष या दो वर्षमें एक एक संतान उप्तन्न करता जाय, तो भविष्यमें उसका परिणाम क्या होगा ? इसका विचार पाठक स्वयं कर सकते है । इसलिए देशको यदि दरिद्रतासे बचाकर रखना हो और हैंना, दुष्काल, धरतीकंप और लड़ाई-इन चार प्रकृतिके कोपोंका भोग न बनाना हो, और भारतवर्षमें एकताका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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