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कैसा फल मिलता है, सो उनका आत्मा ही जानता है। कई वार उनको अंदर ही अंदर जूतियाँ भी खाना पड़ती हैं। अच्छे अच्छे बुद्धिमान और दूसरे मनुष्योंको अपनी बुद्धिमत्ताकी बातें सुनानेवाले भी कईवार स्त्रियोंके आगे बकरी जैसे हो जाते हैं। कइयोंको तो स्त्रियोंकी गालियाँतक खानी पड़ती हैं। वे उन गालियोंको घीकी नाले समझकर गटागट पी जाते हैं, यह आत संसारके अनुभवियों से छुपी हुई नहीं है। यह सब कुछ उन्हें क्यों सहना पडता है, ! केवल विषयभोगके आधीन हो जानेसे । वास्तविक बात तो यह है कि, पुरुषका प्रभाव स्त्री पर पड़ना चाहिए; परन्तु आज कल बहुधा देखा जाता है कि, इससे उल्टा होता है। यानी स्त्रीका प्रभाव पुरुषपर पड़ता है। इसका कारण सिवाय पुरुषोंकी निर्बरताके और कुछ नहीं है। अस्तु । ज्यादा पुत्रोंकी उत्पत्तिसे आर्थिक हानि । ___ हम यहाँ पर जो कुछ कहना चाहते हैं, वह ज्यादा पुत्रोस्पत्तिके बारेमें हैं । कई मनुष्य ऐसे भी हैं, जिनके सवा डमन छोकरे छोकरियाँ खेलते रहते हैं; सत्तर वर्षकी उम्र हो जाती है, तो भी वे विषयसे निवृत्त नहीं होते हैं और न संतोष ही रखते हैं । उनकी इच्छा होती है कि, यदि हम दस पाँच वर्ष और ज्यादा जिन्दा रहते तो हमारे दो चार बच्चे और भी उत्पन्न हो जाते; परन्तु ऐसे मनुष्य आर्थिक दृष्टीसे भारतवर्षकी कितनी
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