Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 100
________________ उचित आज्ञाका पालन करने में प्राणान्त कष्ट भोगना पड़े और प्राणका नाश भी कर देना पड़े तो भी उसे पालना चाहिए। जैसे- किसी स्त्रीको एकवार उसके पतिने परीक्षा करने अथवा अन्य कारणसे कहा-“जा वह सर्प जाता है। उसके दाँत गिन ला।" स्त्रीने सोचा कि; इस आज्ञाको पालनेसे यदि कुछ जायगा तो वह प्राण जायगा, परन्तु धर्म नहीं जायगा, इसलिए इस आज्ञाका पालन करना ही चाहिए। ऐसा सोचकर वह सर्पके पास गई । सर्प फंकार करता हुआ सामने आया । स्त्री एकदम मारे डरके पीछे हट गई । इससे एक फायदा भी हुआ । कुछ समयसे स्त्री, उसकी रीढकी रग बँध जानेसे, कुबड़ी हो गई थी, इस समय वह भयके साथ पीछे हठी, इससे अकस्मात ऐसा झटका लगा कि, उसकी पीठकी बँधी हुई रग खुल गई। और उस स्त्रीकी कमरका टेढापन मिट गया । सर्प चला गया । स्त्रीकी पतिभक्तिके लिए पतिको असीम आनन्द हुआ। यह आज्ञा प्राणघातक होनेपर भी धर्मघातक नहीं थी। ___ दूसरा उदाहरण लो-कोई पुरुष अपनी स्त्रीसे कहे कि" मैं मांस खाता हूँ इसलिए तू भी मांस खा ।" " मैं शगब पीता हूँ इसलिए तू भी पी।" यद्यपि यह आज्ञा प्राणघातक नहीं है तथापि धर्मघातक अवश्य है। इसलिए सुशील और धर्म + यदि ऐसी धर्मघातक आज्ञाका पालन न करे, तो क्षिणी ला चर्म नष्ट नहीं होता है। इसीलिए पहिले यह उससे उसका पतिव्रता Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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