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और कई मृतक पुत्रको जन्म देती हैं, इत्यादि । उनकी ऐसी स्थिति होनेका कारण क्या है ? यही कि, भवान्तरमें उन्होंने शीलवतका खंडन किया था । शास्त्रकार कहते हैं किः"कुरंडरंडत्तणदहगाई वज्झनिंदुविसकन्नगाई। जम्मंत्तरे खंडिअसीलभावा नाऊण कुआ दढसीलभावं" ||
भावार्थ-जन्मांतर में कियेहुए शीलके भंगसे स्त्री खराब विधवापन, दुर्भाग्य, वाँझपन प्राप्त करती है। मृतक पुत्रको जन्म देनेवाली होती है और विषकन्यादिका अवतार पाती है। इसलिए शीलभावको दृढ़ रखना चाहिए । पतिव्रताधर्म किसे कहते हैं?
स्त्रियोंमें सबसे बड़ा कोई गुण यदि हो तो वह पतिव्रताधर्म है। पतिकी आज्ञामें रहना, पतिके सुखमें सुखी और दुःखमें दुःखी होना यही पतिव्रताका प्रधान लक्षण है। पतिको भी उचित आज्ञा करनी चाहिए । अनुचित नहीं । स्त्री सन्मान भी उचित आज्ञाको ही दे सकती है । यह जानना आवश्यक है कि, उचित आज्ञा कौनसी ? जो आज्ञा महान् विकट और प्राणान्त कष्ट देनेवाली होनेपर भी धर्मके विरुद्ध नहीं होती है वही आज्ञा उचित गिनी जाती है । और जो आज्ञा सुगम और मजेदार होने पर भी धर्मविरुद्ध होती है वह आज्ञा अनुचित है। अनुचित आज्ञा नहीं पालनेसे पतिव्रताधर्ममें दोष नहीं लगता है। मगर
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