Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

View full book text
Previous | Next

Page 89
________________ साम्राज्य स्थापन करना हो तो, इस आर्थिक दृष्टिसे भी चाहिए कि, वे विषयवासनाओंको कमकरके पुत्रोत्पत्तिके प्रवाहको रोकें। वास्तविक दृष्टि से यदि मनुष्य विचार करेंगे, तो उन्हें मालुम हो जायगा कि, चुहियाकी तरह अनेक संताने उत्पन्न करनेसे कुछ लाभ नहीं है । पक्के वीर्यसे तेजस्वी, दीर्घायु मजबूत संघठनका एक ही बच्चा हो तो वह गृहस्थोंके लिए पर्याप्त हो जाता है । नीतिकारका यह कथन सर्वथा सत्य है कि:--- "एकेनाऽपि सुपुत्रेण सिंही स्वपिति निर्भयम् । सहैव दशभिः पुत्रैर्भारं वहित गर्दभी " ॥ १ ॥ अर्थात् - एक सुपुत्रकी प्राप्तिसे सिंहनी निर्भय होकर सोती है और दश पुत्र होने पर भी बिचारी गधीको जन्मभर भार ही वहन करना पड़ता है ! इसलिए दश निर्बल पुत्रोंकी अपेक्षा एक सशक्त पुत्र ही अच्छा है। ___संसारमें मनुष्योंके पुत्रप्राप्तिकी इच्छा कितनी प्रबल होती है। इस बातसे कोई भी अजान नहीं है । साठ २ सत्तर २ वर्षके बूढे दश दश या पंद्रह २ वर्षकी बालिकाओंके साथ लग्न करके उनके सारे जीवनपर पानी फेर देते हैं, इसका क्या कारण है ? केवल पुत्रप्राप्तिकी इच्छा । कमर टूट नाने पर भी न्याह करनेकी इच्छा करना-व्याह करना बहुत ही धिक्कारने योग्य है । तो भी लोग. इससे मुँह नहीं मोड़ते हैं । इसी प्रकार Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108