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भारी हानि करते हैं; इसका भी कोई विचार करता है ! कीहियोंकी तरह उभराती हई-बढती हई-मनुष्यवृद्धि क्या कभी कायम रह सकती है ! प्राचीन इतिहासोंको देखो । उनसे मालुम होगा कि, मनुष्यवृद्धि जब जब ज्यादा हुई तभी तब कुदरतके जंगली कानूनने अपना स्वछंद अधिकार चलाया है। हैना, दुष्काल, धरतीकंप और लड़ाई-ये चार कुदरतके जंगली हथियार हैं । जबजब सृष्टिकमकी मर्यादाका उल्लंघन होता है; कचरा कूढ़ा बढ़ा जाता है तभी उसको सफा करनेके लिए कुदरत अपने इन जंगली हथियारोंका उपयोग किया करती है। और भी एक बात विचारने लायक है । भारतवर्षमेंसे वैरभाव और स्वार्थपरताका अभाव नहीं होता, इसका सबब क्या है ? इसका कारण भी बस्तीके प्रमाणका बहुल्य ही है । यह बात संकुचित दृष्टिवाले मनुष्य नहीं समझ सकते । इसके लिए अंदर उतरनेकी जरूरत है। जिस देशकी मनुष्योत्पत्ति जमीनकी पैदाइशके प्रमाणमें होती है, उस देशके मनुष्य वैरभावरहित जीवन बिताते हैं । भारतवर्षकी वर्तमान स्थिति इससे उल्टी है। हिदुस्थान देश मुर्गों और कुत्तोंकी तरह संतति उप्तन्न करनेमें अन्यान्य देशोंसे बहुत आगे बढ़ गया है और द्रव्योत्पत्तिमें दूसरोंसे बहुत पीछे पड़ गया है । एक मनुष्यने हिसाब लगाया है कि, भारतवर्षके एक मनुष्यको १५ मनुष्योंकी खुराक पैदा करनी पड़ती हैं और प्रति मनुष्यकी मासिक आयका हिसाब ढाई रू. है।
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