Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 85
________________ इस तमाशेको देखने में चोरको इतना मना आनंद आया कि, वह चोरी करना भूलकर एक कोनेमें खड़ाहुआ यह तमाशा देखता रहा । सवेरा होते ही चोर पकड़ा गया। चोर जब कोर्टमें पेश किया गया तब उसने कहा:-" यह अपराध स्वीकार करता हूँ कि, मैं चोरी करने गया था, आप मुझे इस अपराधके बदलेमें कैद कीजिए, देशनिकाला दीजिए या फाँसीका हुक्म दीजिए । मैं दंड भोगनेको तैयार हैं। परन्तु मैं प्रार्थना करता हूँ कि, आप मुझे दो स्त्रियोंका पति बननेकी आज्ञा न दीजिए।" चोरकी यह बात सुनकर सबको बड़ा आश्चर्य हुआ। जब उसे कारण पूछा गया तब उसने कहा कि,-" ये सेठ दो स्त्रियाँ करके जो दुःख उठाते हैं, उस दु खके सामने फाँसीकी लकड़ी पर चढ़कर मरनेका दुःख किसी हिसाबमें गिनतीमें नहीं है।" इससे समझमें आता है कि, दो स्त्रियोंका पति सचमुच बहुत ही दुखी होता है और वह बहुत दुःख झेल झेल कर मरता है । ऐसा जानने पर भी जो मनुष्य एकसे ज्यादा स्त्रियाँ व्याह लेता है, इसका कारण उसकी विषयलालसा ही है। इस विषयकी लालसाके सिवाय इसमें और भी कारण है। वह है-एकसे ज्यादा पुत्र प्राप्तिकी इच्छा । यदि एक स्त्रीसे पुत्र उत्पन्न नहीं होता है, तो वह दूसरी करता है और यदि दूसरीसे भी पुत्र नहीं होता है, तो तीसरी करता है । कई तो ज्यादा स्त्रियाँ करना धनाढ्यताका भूषण समझते हैं, परन्तु भीतर ही भीतर इस धनाढ्यताके भूषणका Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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