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हैं । उस बिचारेका सारा जीवन जल जल कर व्यतीत होता है। शास्त्रकार कहते हैं
"वरं कारागृहे तितो वरं देशान्तरभ्रमी । वरं नरकसंचारी न द्विभार्यः पुनः पुमान् ॥ १॥ अभोजनो गृहाद् याति नानोत्यम्बुच्छटामपि। अक्षालितपदः शेते भार्याद्वययुतो नरः" ॥२॥ अर्थात कैदखानेमें रहनेवाला श्रेष्ठ है, देशान्तरमें भ्रमण करनेवाला अच्छा है, नरकमें विचरनेवाला अच्छा है, परन्तु दो स्त्रियोंका पति श्रेष्ठ नहीं है। दो स्त्रियोंके पतिको घरसे भोजन किये विना जाना पड़ता है, पानीकी वद. तक नहीं मिलती और विना पैर धोये ही उसे सो जाना पड़ता है।
यह बात झूठ नहीं है । दोनोंका प्रेम संपादन करने के लिए अथवा दोनों स्त्रियोंको रानी रखनेकेलिए उसे जो मुसीबतें उठानी पड़ती हैं, उनको उसका अंतरात्मा ही जानता है। बड़ा भारी शूरवीर, होशियार और विचक्षण पुरुष भी यदि दो स्त्रियोंका पति बन जाता है, तो उसकी सारी शूरवीरता, उसकी सारी होशियारी और उसकी सारी विचक्षणता उन स्त्रियोंके आगे हवा हो जाती है । अमुकको कैसे समझाना और अमुकको कैसे राजी करना, यही फिक्र बिचारेको रात दिन सुखाया करती है। इसके अलावा उन दोनों स्त्रियोंके पारस्परिक लड़ाई झगड़ोंसे
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