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बत्तीके ऊपर तैल चढ़नेसे प्रकाश बढ़ता है, उसी तरह जिस मनुष्यकी शक्तिका व्यय नीचेके भागमें नहीं होता है; जिसकी शक्ति ऊपरके भागमें चढ़ती है, उसकी आकर्षण शक्तिकी और मानसिक तेजकी वृद्धि होती है। उसको परमानंद प्राप्त होता है। इतना ही नहीं उसकी संतति भी महान तेजस्वी और मजबूत होती है । कलिकाल सर्वज्ञ श्री हेमचंद्राचार्य योगशास्त्रके दूसरे प्रकाशमें कहते हैं कि:"चिरायुषः सुसंस्थाना दृढसंहनना नराः। तेजस्विनो महावीर्या भवेयुब्रह्मचर्यतः" ॥ १०५ ॥
अर्थात्-ब्रह्मचर्य पालनेसे मनुष्य लंबी आयुष्यवाले, अच्छे संस्थानवाले, मजबूत शरीरवाले, तेजस्वी और अत्यंत बलवान् होते हैं।
इसलिए शरीरकी रक्षा और अच्छी संतति उत्पन्न करनेकी इच्छा रखनेवाले गृहस्थको अवश्य 'ब्रह्मचर्य ' का पालन करना चाहिए। कई दफा ऐसा देखा जाताहै कि, वृद्धावस्थामें कई मनुष्योंकी बुद्धि मंद पड़जाती है । क्या ऐसा होना चाहिए ? वृद्धावस्था तो बुद्धिका खजाना होनी चाहिए; वृद्धावस्थामें तो मनुष्यको पूर्ण अनुभवी और ज्ञानकी मूर्ति बनना चाहिए; उसके बदले वह बनता है क्या ? प्रायः कइयोंमें तो कौड़ीभर भी अक्ल नहीं रहती; बोलनेका भी होश नहीं रहता । उनके हृदयोंमें भनेक प्रकारकी लालसाएँ बढ़नाती हैं । उनके शरीरका प्रत्येक
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