Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 36
________________ कितनी सख्त मनाई ! अन्य बुद्धिशाली पुरुषों की अनुपस्थितिमें स्त्रीको धर्मोपदेश देना भी पाप ! प्रायश्चित्त करने योग्य कृत्य! यह तो एकान्तमें वार्तालाप करनेकी बात हुई परन्तु बौद्धोंके उपर्युक्त ग्रंथमें तो यहाँतक लिख दिया है कि:२१ योपन भिक्खु असम्मतो भिख्खुनियो ओवदेय्य,पाचित्तिय। २२ सम्मतोपि चे भिक्खु अत्थं गते सुरिये भिक्खुनियो ओवदेय्य, पाचित्तियं । २३ यो पन भिवावु भिक्खुनूपस्सयं उपसङ्कमित्वा भिक्खुनियो ओवदेय्य, पाचित्तियं । (पृ २८) त-जो भिक्षु संकी सम्मतिके विना साध्वियोंको उपदेश देता है, वह प्रायश्चित्तका भागी होता है । संघकी सम्मति लेकर भी यदि कोई सूर्यास्तके पश्चात् साध्वियोंको उपदेश देता है तो वह भी प्रायश्चित्तका भागी बनता है । इसी तरह कोई साधु विना कारण साध्वियोंके स्थानमें उपस्थित होकर उनको उपदेश देता है तो वह भी प्रायश्चित्तका भागी बनता है। सकारण जाना, किसी साध्वीका रूग्ण होना हो सकता है। इसके सिवा अन्य भी कई नियम स्त्रियोंके संसर्गमें विशेष नहीं रहनेके लिए बौद्धग्रंथों में बताये गये हैं। वे किस लिए ? केवल ब्रह्मचर्यकी रक्षाके लिए । स्त्रियोंका विशेष संसर्ग रखनेवाला मनुष्य-साधु ब्रह्मचर्यको कदापि अखंड नहीं रख. सकता है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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