Book Title: Bramhacharya Digdarshan
Author(s): Vijaydharmsuri, Lilavat
Publisher: Yashovijay Jain Granthmala

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Page 46
________________ वर्तमानके युवक और बालकोंकी स्थिति । ___अपरिपक्व वीर्यसे संतति उत्पन्न करनेकी आशा ऐसी ही असंभव और व्यर्थ है, जैसी कि सड़े हुए अनाजसे उत्तम अनान पैदा करनेकी आशा व्यर्थ है । यह बात अक्षरशः सच्ची है। इसलिए बच्चों के मातापिताको चाहिए कि वे इस बातकी ओर ध्यान दें और कमसे कम पचीस वर्षकी उम्र तक ब्रह्मचर्यका पालन करवाये विना वे कदापि अपने बच्चोंको लग्नपासमें न बाँधे। जो माता-पिता हरसमय अपने बालकोंके सुखके लिए खड़े रहते हैं-प्रयत्न करते हैं वे ही पुत्रवधूका मुँह देख अपनी इच्छा तृप्त करनेके लिए अपने प्पारे बच्चे के जीवनके सुख पर कंटक बोते हुए जरा भी नहीं हिचकिचाते हैं। वे बाल्यावस्था में लग्न करनेसे क्या हानि होगी इसका कुछ भी विचार नहीं करते । वे केवल अपनी इच्छा पूर्ण करने के लिए तैयार रहते हैं । पीछेसे लड़का जब सिरके दर्दसे व छातीके दर्द से पीड़ित होता है; उसपर जब कई रोग आक्रमण करते हैं, तब वे उसे धातुओंकी भस्म खिलाते हैं और दूध औटा औटाकर पिलाते हैं। परन्तु लड़का गुप्तरूपसे किस तरह अपने शरीरका नाश कर रहा है इस बातकी तरफ वे कभी ध्यान नहीं देते । शरीरकी ऐसी खराब दशा हो जाने पर भी वे स्पष्टतया शब्दान्तरसे समझाकर उस लड़के को दो चार सालके लिए उस गुडियाके-अपनी बहुकेपास जानेसे नहीं रोकते । जो मनुष्य शरीर निचोड़ निचोड़ कर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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