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क्या है ? जो अवस्था हम पहिले ब्रह्मचर्यकी बता चुके हैं, अर्थात् यह बता चुके हैं कि कमसे कम २५ वर्ष तक अवश्यमेव ब्रह्मचर्य पालना चाहिए, वह. अवस्था इस समयमें ब्रह्मचर्य तो क्या मगर यौवनकालमें भी न रही। उसमें तो अब वृद्धावस्था प्रारम्भ हो जाती है । इसमें कोई अत्युक्ति नहीं है । इस लिये प्रत्येक मनुष्यको चाहिए कि वह अपने पुत्रको कमसे कम २५ वर्ष तक और पुत्रीको १६ वर्ष तक विवाह बंधनसे जरूर दूर रक्खे । इतना ही नहीं साथ साथ उनकी सख्त देखरेख रख, उनसे पूर्णतया ब्रह्मचर्यका पालन भी करावे । माता-पिताका कर्तब्य ।।
प्राचीन प्रणालीके अनुसार तो लड़कोंको गुरुके और लड़कियों को गुराणी के (साध्वीके ) समागममें रखकर ब्रह्मचर्य पालनयुक्त विद्याध्ययन करवाना चाहिए । परन्तु वर्तमानमें यह रीति लोप हो जानेके कारण ऐसा प्रबंध होना असंभव है। इसलिए माता-पिताको चाहिए कि वे सन्तानको अपने पास रखते हुए पुत्रसे २५ वर्ष तक और पुत्रीसे १६ वर्ष तक ब्रह्मचर्यका पालन करावें । सन्ताने ब्रह्मचर्यको नष्ट न करदें इसका वे पूरा ध्यान रखें। उनके अंतःकरण पर बुरे संस्कार न पड़ जाय, उनका चित्त विषयकी ओर न झुक जाय इस बातकी भी बड़ी सावधानी रखनी चाहिए । ब्रह्मचारियोंका जीवन एक अच्छे साधु जीवनकी तरह बीतना चाहिए । जैसे-सादा वेष, सादा भोजन और
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